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भावप्रामृतम्
भावसवणो य धोरो जुवईयणबेटिओ विसुद्धमई । णामेण सिवकुमारो परित्तसंसारिओ जादो ॥ ५१ ॥ भावश्रमणश्च धोरो युवतिजनवेष्टितो विशुद्धमतिः । नाम्ना शिवकुमारः परीतसंसारिको जातः ॥ ५१ ॥
( भाव समणो य धीरो ) भावश्रमणश्च जिनसम्यक्त्ववासितः धीरो दृढसम्यक्त्व : अविचलितामलिनमनाः । ( जुवईयण वेढिओ विसुद्धमई ) युवतीजनवेष्टितः हावभावविभ्रमविलासोपेत राजकन्यात्मयुवतिसमूह परिवृतोऽपि विशुद्धमतिः निर्मलब्रह्मचर्यं निष्कलुषचित्तः । ( णामेण शिवकुमारो ) नाम्ना कृत्वा शिवकुमारो नरेन्द्रपुत्रः । ( परित्तसंसारिओ जादो ) अल्पसंसारिकः परित्यक्तसंसार आसन्न -
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गाथार्थ - शिवकुमार नामक भाव श्रमण युवतिजनों से वेष्टित होने पर भी निर्मल बुद्धिका धारक धीर, संसारको पार करने वाला हुआ ।। ५१ ।।
विशेषार्थ - जो भाव श्रमण थे अर्थात् जिन सम्यक्त्व से सहित थे, धीर थे अर्थात् दृढ़ सम्यक्त्व से युक्त थे विकट परिस्थिति में भी जिनका मन विचलित तथा मलिन नहीं हुआ था, जो हाव भाव विभ्रम तथा विलास से सहित राज - कन्याओं रूप अपनी तरुण स्त्रियों के समूह से परिवृत होकर भी विशुद्ध बुद्धिसे युक्त रहे अर्थात् निर्मल ब्रह्मचर्यं से जिनका चित्त कलुषित नहीं हुआ ऐसे शिवकुमार नामा राजपुत्र संसारका परित्याग कर निकट भव्य हुए । अर्थात् इस भरत क्षेत्र में जम्बू नामक अन्तिम केवली हुए । शिवकुमारकी कथा इस प्रकार है
शिवकुमारकी कथा
• अथानन्तर राजा श्रेणिक ने विपुलाचल पर स्थित श्रोमहावीर भगवान् को प्रणाम कर श्री गौतम स्वामी से कहा - हे भगवन् ! इस भरत क्षेत्रमें अन्तिम केवली कौन होगा ?
तदनन्तर श्री गौतम स्वामी ज्योंही कथा का निरूपण करनेके लिये उद्यम करते हैं त्यों ही वहाँ उसी समय ब्रह्मस्वर्ग का स्वामी ब्रह्म हृदय नामक विमान में उत्पन्न हुआ विद्युन्माली देव जिसका कि मुकुट देदीप्यमान तेजसे सुशोभित था, जो नाम और अपने दर्शन से प्रिय था तथा विद्युत्प्रभा और विधुद्वेगा आदि अपनी देवियों से घिरा हुआ था, आ पहुंचा और जिनेन्द्र देवकी वन्दना कर यथा-स्थान बैठ गया । उसे देख २३
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