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षटप्राभूते
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करिष्यसि ? इत्यवदत् । सुलसा तु तदुपरोधं नामन्यत । अतिथिरुपायेन मंदोदरी - प्रवेशं तत्र निवारयामास । सा निजस्वामिनं नष्टं कार्यं जगाद् । राजाह हे विश्वभूमन्त्रिन् ! इदं मम कार्यं त्वया सर्वथा कार्यं । तत्श्रुत्वा तेन विश्वभुवा स्वयंवर - विधानं नाम सामुद्रिक शास्त्रं नवीनं रचयित्वा तत्पुस्तकं मंजूषायां निक्षिप्य यथा कोऽपि न जानाति तथा वनमध्ये भू- तिरोहितं निदधे । तत्रोद्या नभूशोधनं कार - यन् हलाने लग्नां मंजुषां समानीय मया लब्धेयं चिरन्तनशास्त्रसंयुक्ता मंजूषा । स्वयमजानन्निव राजपुत्राणामग्रग्रे वाचितवान् । वरकदम्बके कन्या पिङ्गाक्षं माया न संभावयेत् । संभावयेच्चेत्तर्हि सा कन्या म्रियते । पिङ्गाक्षेण सभामध्ये न प्रवेष्टव्यं । पापभयाल्लज्जितव्यं च प्रधानान्न बिभेति च न लज्जते । तदा स पापी निर्धाटनीयः । सत्सर्वं श्रुत्वा तद्गुणत्वाल्लज्जया निर्गत्य हरिषेणगुरुपादमूले दीक्षां जग्राह । तज्ज्ञात्वा सगरो विश्वभूश्च मुदं प्रापतुः । अन्ये च कुटिला मुदं
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रोक दिया । मन्दोदरी ने अपने स्वामी राजा सगरसे कह दिया कि कार्य नष्ट हो गया है । राजाने विश्वभूमन्त्री से कहा कि हे मन्त्रिन् ! तुम्हें मेरा यह कार्य सब तरहसे सिद्ध करना चाहिये । यह सुनकर विश्वभूमन्त्री ने स्वयंवर - विधान नामक एक नवीन सामुद्रिक शास्त्र की रचना कर उसकी 'पुस्तक को एक पेटीमें रक्खा और जिस तरह कोई न जान सके इस तरह पेटीको वन मध्य पृथिवी के अन्दर छिपा दिया ।
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तदनन्तर मन्त्रीने उसी स्थानपर बगीचाके लिये भूमि को साफ कराना शुरू किया। वह पेटी हल को नोंक में आ लगी । मन्त्रीने उस पेटोको लाकर प्रकट किया कि मुझे प्राचीन शास्त्रसे युक्त यह पेटी मिली है । तथा स्वयं अनजान जैसा बनकर राजपुत्रोंके आगे उसने वह पुस्तक बँचवाई। उसमें लिखा था कि वरोंके समूह में कन्या ऐसे वरको वरमालासे सम्मानित न करे जिसके नेत्र पोले हों । यदि करेगी तो वह कन्या मर जावेगी । पीले नेत्र वालेको सभाके बीच प्रवेश नहीं करना चाहिये तथा पापके भय से उसे लज्जित होना चाहिये । इतने पर भी यदि वह सभा के प्रधानसे भयभीत न हो तथा लज्जित न हो तो उस पापोको निकाल देना चाहिये । यह सुन कर अपनेमें वह गुण होनेसे अर्थात् पोले नेत्र होनेसे मधुपिङ्गल लज्जाके कारण सभासे स्वयं बाहर निकल गया और वहाँ उसने हरिषेण गुरुके पादमूल में दीक्षा ग्रहण कर ली । यह जानकर सगर राजा तथा विश्वभूमन्त्री हर्षको प्राप्त हुए । इनके सिवाय अन्य कुटिल परिणामी मनुष्य भो हर्षको प्राप्त हुए । सत्पुरुष और उनके
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