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________________ -५.३४ ] भावप्राभृतम् कालमणंतं जीवो जम्मजरामरणपीडिओ दुक्खं । जिणलगेण वि पत्तो परंपराभावरहिण ॥ ३४॥ कालमनन्तं जीवः जन्मजरामरणपीडितः दुःखम् । जिनलिङ्गेन अपि प्राप्तः परम्पराभावरहितेन ||३४|| ( कालमणं तं जीवो) कालं समयमनेहसमिति यावत्, अनन्तमन्तरहितं कर्मतापन्नं जीव आत्मा दुःखं प्राप्त इति क्रियाकारकसम्बन्धः । कालाध्वदेशभावानां कर्मसंज्ञा सिद्धैव वर्तते । कथंभूतो जीवः, ( जम्मजरामरणपीडिओ ) जन्मजरामरणपीडितः चम्पितः । ( जिणलिंगेण वि ) अर्हद्रूपविशिष्टोऽपि । अपि शब्दादविशिष्टोपि कथंभूतेन जिनलिंगेन ( परम्पराभावरहिएण ) परम्परा आचार्य - प्रवाहस्तदुपदिष्टं शास्त्रं च परम्परा शब्देन लभ्यते तत्र भावरहितेन प्रतोतिवर्जितेन २८५ गाथार्थ - इस जीवने जिनलिङ्ग भी धारण किया परन्तु आचार्यप्रवाहके द्वारा उपदिष्ट तत्व अथवा शास्त्र की प्रीति से रहित होकर धारण किया इसलिये अनन्त काल तक जन्म जरा और मरणसे पीडित होता हुआ यह दुःखको प्राप्त हुआ है ॥ ३४ ॥ विशेषार्थ - इस जीववे यद्यपि अनन्तवार जिनलिङ्ग भी धारण किया है - नग्न दिगम्बर मुद्रा रखकर घोर तपश्चरण भी किया है तथापि उसने वह जिनलिङ्ग परम्परा भावसे रहित होकर धारण किया । परम्पराका अर्थ आचार्य प्रवाह है। आचार्य प्रवाहने जो उपदेश दिया है वह तथा उनकी आम्नायमें जो शास्त्र लिखे गये हैं वे सब परम्परा शब्द से व्यवहृत होते हैं उस परम्परामें भाव अर्थात् प्रतीति-- दृढ़ श्रद्धासे रहित होकर इसने जिर्नालिङ्ग धारण किया है, अतः जिनलिङ्ग धारण करके भी अनन्तकाल तक जन्मजरा और मरणसे पीड़ित होकर इसने दुःख प्राप्त किया है। जब जिन लिङ्ग धारण करके भी दुःख प्राप्त किया तब बिना जिनलिङ्ग धारण किये दुःख प्राप्त करनेकी तो बात ही क्या है ? काल, मार्ग देश और भाव-वाचक शब्दोंकी कर्म संज्ञा व्याकरणसे सिद्ध है अतः ‘अणतं काल' यहाँ अत्यन्त संयोग अर्थ में कालशब्द की कर्मसंज्ञा हुई है और उसी कारण उसमें द्वितीया विभक्तिका प्रयोग हुआ है । प्रश्न – वह परम्परा क्या है ? समाधान — इस अवसर्पिणी युगके तृतीय कालके अन्तमें श्री भगवान् वृषभनाथने अर्थ रूपसे शास्त्रका उपदेश दिया था और वृषभसेन गणधर ने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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