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-५.२८-२९ ]
छत्तीसं तिणि सया छावद्विसहत्सवारमरणाणि । अंतोमुहुत्तमज्झे पत्तोसि निगोयवासम्म ॥ २८ ॥ षट्त्रिशतं त्रीणि शतानि षट्षष्ठि सहस्रवारमरणानि । अन्त हत्तंमध्ये प्राप्तोऽसि निकोवासे ॥ २८ ॥ ( छत्तीसं तिणिसया ) षट्त्रिंशदधिकत्रिशतानि । ( छावट्टिस हस्सवारमरणानि ) षट्षष्ठिसहस्रवारान् मरणानि ६६३३६ । ( अन्तोमुहुत्तमन्झे ) अन्तर्मु हूतंमध्ये । ( पत्तोसि निगोयवासम्म ) प्राप्तोऽसि निकोतवासे ।
भावप्राभूतम्
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वियलदिए असोदी सट्ठी चालीसमेव जाणेह । पंचिदिय चउवीर्स खुद्दभव॑तो मुहुत्तस्स ॥ २९ ॥ विकलेन्द्रियाणामशीति षष्ठि चत्वारिंशदेव जानीत | पञ्चेन्द्रियाणां चतुर्विंशति क्षुद्रभवान् अन्तर्मुहूर्त्तस्य ॥ २९ ॥ ( वियलदिए असीदी सट्टी चालीसमेव जाणेह ) विकलेन्द्रियाणां द्वीन्द्रियश्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियजीवेषु अनुक्रमेण मरणसंख्यामन्तर्मूहूर्तस्य करोति । तथाहि । द्वीन्द्रिया जीवा अन्तर्मुहूर्तेन अशीतिवारान् म्रियन्ते । त्रीन्द्रिया जीवा अन्तर्मुहूर्तेन
गाथार्थ - तू निकोत - वासमें अन्तर्मुहूर्तके भीतर छ्यासठ हजार तीनसी छत्तीस वार मरणको प्राप्त हुआ है ||२८||
विशेषार्थ - गाथामें आये हुए 'निगोय वासम्मि' शब्द की संस्कृत छाया निकोत वासे' है । निगोद शब्द एकेन्द्रिय वनस्पति कायिक जीवोंके साधारण मेदमें रूठ है, जब कि निकोत शब्द पांचों इन्द्रियोंके सम्मूर्च्छन जन्मसे उत्पन्न होनेवाले लब्ध्यपर्याप्तक जीवों में प्रयुक्त होता है। इसलिये यहाँ जो ६६३३६ बार मरणकी संख्या है वह पांचों इन्द्रियोंकी सम्मिलित समझना चाहिये ||२८||
गाथार्थ - विकलेन्द्रिय जीवोंके अन्तर्मुहूर्तसम्बन्धी क्षुद्रभव क्रमसे अस्सी, साठ और चालीस जानो तथा पञ्चेन्द्रियोंके चौबीस समझो ||२९||
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विशेषार्थ - द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय ये विकलत्रय कहलाते हैं । इनमें दो इन्द्रियोंके अस्सी, तीन इन्द्रियोंके साठ और चतुरिन्द्रियोंके चालीस शुद्रभव होते हैं । पञ्चेन्द्रिय जीवोंके चौबीस होते हैं । तात्पर्यं यह है कि हीन्द्रिय जीव अन्तर्मुहूर्तमें अस्सी बार मरते हैं, तीन इन्द्रिय जीव अन्तर्मुहूर्त में साठवार मरते हैं, ची इन्द्रिय जीव चालीस बार ओर १८
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