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________________ —५. २६ ] भावप्राभूतम् हिमजलणसलिलगुरुयरपव्वयत रुरुहण पडणभंगेहि । रसविज्जजोयधारणअणयपसंगेहि विविहि ॥ २६ ॥ हिमज्वलनसलिलगुरुतरपर्वतत रुरोहणपतनभङ्गैः । रसविद्यायोगधारणानय प्रसंगैः विविधैः ||२६|| २७१ ( हिम ) केषां चिज्जन्तूनां मानवानां च शीतेनापमृत्युर्भवति । ( जलणं ) केषांचिज्ज्वलनेनाग्निनापमृत्युर्भवति ( सलिल ) कषांचित्सलिलेन समुद्रादिजलेनापमृत्युर्भवति । ( गुरुयरपव्त्रयतरुरुहणपडणभंगेहि ) गुरुतरा अत्युन्नतशिखरास्ते च ते पर्वतास्तु ंगीगिर्यादयः, तथा तरवो वृक्षा गुरुतरपर्वततरवस्तेषां रोहणेण पतनेन च कृत्वा ये भंगाः शरीरामर्दनानि ते तथा तैः हिमज्वलनसलिलगुरुतरपर्वततरु मरण ही होता है । परन्तु उनका ऐसा कहना ठीक नहीं है क्योंकि अकालमरण की परिभाषा ऊपर दी जा चुकी है, उसके अनुसार जिन जीवोंके आयु कर्म निषेक अपने स्वाभाविक क्रमको छोड़ एक साथ खिरते हैं उनका अकाल-मरण कहलाता है । केवल ज्ञानमें भी यही बात आती है कि इस जीव की आयु इतनी है परन्तु उसके निषेक अमुक समय में अमुक कारण से एक दम खिर जावेंगे। जिनागम में अपवर्त्यायुष्क और अनपवयुक दोनों प्रकार के जीवों का उल्लेख है, अतः सबको अनपययुष्क कहना आगम सम्मत नहीं है । [ कोई कोई लोग यह कहते देखे जाते हैं कि निश्चयनय से अकाल मरण नहीं है, व्यवहार नयसे है, पर वे यह भूल जाते हैं कि निश्चय नयसे जीवका न मरण होता है और न जन्म होता है । ] जन्म और मरण दोनों का उल्लेख व्यवहार नयका ही विषय है । ] Jain Education International ..आगे आयु क्षीण होने के कुछ कारण और बताते हैं गाथार्थ - हे जीव ! हिम, अग्नि, पानी, बहुत ऊँचे पर्वत अथवा वृक्षोंके ऊपर चढ़ने और गिरने के समय होने वाले अङ्ग भङ्ग से तथा रसविद्याके योग धारण और अनीतिके नाना प्रसङ्गोंसे आयु क्षीण होती है ॥ २६ ॥ विशेषार्थ - कितने ही जन्तुओं और मनुष्यों की शीतसे अपमृत्यु होती है, किन्हीं की अग्नि से अपमृत्यु होती है, किन्हीं की समुद्रादि के जलसे मृत्यु होती है, किन्हीं की अत्यन्त ऊँची शिखरवाले तु गीगिरि आदि पर्वत तथा वृक्षोंके ऊपर चढ़ने और गिरनेके कारण उत्पन्न अङ्गभङ्गसे For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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