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प्रतिपादक एक महान् ग्रन्थ भी है जिसमें दीक्षार्थी साधकके लिए उपयोगी तथा अत्यावश्यक उपदेश भरा हुआ है ।
णियमसार में भी इसी रत्नत्रयको मोक्ष-प्राप्तिका मार्ग प्रतिपादित किया गया है। बारस-अणुवेक्खामें अध्रुव, अनित्य आदि वैराग्यवर्धक बारह भावनाओंका वर्णन है। उपदेश-प्रधान आठ पाहुडोंमें जो उपदेश आ० कुन्दकुन्दने दिया है उसका प्रधान लक्ष्य श्रमणोंको सच्चे आचारमें सुदृढ़ करना है।
आचार्य कुन्दकुन्दके द्वारा रचित ग्रन्थोंमें चाहे हम पंचत्थिसंग्रह पढ़ें, . समयपाहुड या पवयणसार पढ़े-उनके द्वारा वस्तुतत्वका जो प्रतिपादन किया गया है वह अपूर्व ही है। ___ अट्ठपाहुड, बारस अणुवेक्खा और भत्ति संगहो-इनमें क्रमशः रत्नत्रय, वैराग्य और भक्ति आदि विषयोंका प्रतिपादन बेजोड़ है। समयपाहुड आदि ग्रन्थोंमें आ० कुन्दकुन्दने परसे भिन्न तथा स्वकीय गुण-पर्यायोंसे अभिन्न आत्मा का जो वर्णन किया है वह अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने इन ग्रन्थोंमें आध्यात्मिक सुख प्राप्तिकी धारा रूप जिस अपूर्व मन्दाकिनीको प्रवाहित किया है उसमें अवगाहन कर मुमुक्षु शाश्वत शान्तिकी प्राप्तिके योग्य बनते हैं। तभी तो कविवर वृन्दावनदासने कहा हैजासके मुखारविन्दतें प्रकाश भासवृन्द स्याद्वाद जैन वैन इंद कुन्दकुन्द से, तासके अभ्यासतै विकास भेद ज्ञान होत, मूढ सो लखै नहीं कुबुद्धि कुन्दकुन्द से । देत हैं अशीस शीस नाय इन्द चंद जाहि मोहि मार खंड मारतण्ड कुन्दकुन्द से, विशुद्धि बुद्धि वृद्धिदा, प्रसिद्ध ऋद्धि सिद्धिदा, हुए, न हैं, न होंहिगे मुनिंद
कुन्दकुन्द से ॥ इस तरह साहित्यके क्षेत्रमें आ० कुन्दकुन्दकी अलौकिक विद्वत्ता, शास्त्रग्रथन-प्रतिभा एवं सिद्धान्त ग्रन्थोंके सारका आध्यात्मिक और द्रव्यानुयोगके रूपमें प्रस्तुत करनेका अपना अलग ही वैशिष्ट्य है। महावीर और गौतम गणधरके बाद यह पहला ही अवसर था, जबकि ज्ञानाभ्यासियोंको तत्त्वचिन्तन की एक व्यवस्थित दिशा मिली । यही कारण है कि दिगम्बर जैन परम्परामें भगवान् महावीर और गौतम गणधरके बाद आचार्य कुन्दकुन्दका नाम युगप्रतिष्ठापकके रूपमें बड़ी श्रद्धा और भक्तिके साथ लिया जाता है, और युगों-युगों तक वे इस रूपमें जीवित रहेंगे । आचार्य कुन्दकुन्दके ग्रन्थोंके व्याख्याकार आचार्य अमृतचंद्र, आ० जयसेन, श्रुतसागरसूरि, कनडी वृत्तिकार अध्यात्मी बालचन्द्र,पं० बनारसीदास, पांडे राजमल्ल, पं० जयचन्द्रजी आदि तथा बीसवीं शतीके अनेक मनीषियोंका हम
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