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________________ -४. ५३ ] बोषप्राभूतम् २२७ अस्या अयमर्थः सर्वथा क्षणविनाशवादी बुद्धः । ब्रह्मवादी विपरीत; आत्मनं शाश्वतमेवैकान्तेन मन्यते । तापसो वैनयिकः सर्वविनयेन मोक्षं मन्यते गुणदोषविचारणा तन्मते नास्ति । इन्द्र चन्द्रनागेन्द्रवादी संशयमिध्यादृष्टिः चतुरपरजैनाभासाश्च । संशयवादी किलेवं मन्यते ExYout "सेयंबरो य आसंबरो य बुद्धो य तह य समभावभावियप्पा लहेइ मोक्खं ण मस्करपूरणः खल्वेवं वदति - अण्णोय । अण्णाणादो मोक्खं गाणं णत्यित्ति मुक्कजीवाणं । पुणरागमणं भ्रमणं भवे भवे णत्थि जीवाणं ॥ १ ॥ ( सम्मत्त गुणविसुद्धा ) सम्यक्त्वमेव गुणस्तेन विशुद्धा निर्मला, अथवा सम्यक्त्वगुणैनः शंकितनिष्कांक्षितनिर्विचिकित्सितामूढदृष्टिउपगूहन स्थितीकरणवात्सल्यप्रभावनालक्षणैरष्टभिः सम्यक्त्वगुणैविशुद्धा विशेषेण निर्मला पंचविशतिदोषरहिता मस्करपूरण ऐसा कहता हैअण्णाणादो Jain Education International संदेहो ॥१॥ वेनयिक मिध्यात्व में तापस, संयम मिथ्यात्व में इन्द्र नामका श्वेताम्बर गुरु और अज्ञान मिथ्यात्व में मस्करी प्रसिद्ध हुआ है ||१|| इस गाथाका स्पष्ट अर्थ यह है - 'समस्त पदार्थों का सब प्रकार से क्षणक्षण में विनाश होता है' इसप्रकार एकान्तसे समस्त पदार्थोंको क्षणिक मानने वाला बुद्ध एकान्त मिथ्यादृष्टि है । ब्रह्मवादी विपरीत मिथ्यादृष्टि है वह आत्माको एकान्त से नित्य हो मानता है। तापस- वैनयिक मिथ्यादृष्टि है वह सब को विनय से मोक्ष मानता है उसके मतमें गुण दोषका विचार नहीं है । इन्द्रचन्द्र 'नागेन्द्र' नामका वादो संशय मिथ्यादृष्टि है, इसो प्रकार शेष चार जैनाभास भी संशय मिथ्यादृष्टि हैं । संशय-वादी मिथ्यादृष्टि ऐसा मानता है कि सेयंबरो - श्वेताम्बर हो चाहे दिगम्बर, बुद्ध हो चाहे अन्य कोई, यदि उसकी आत्मा समभावसे सुसंस्कृत है तो वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है, इसमें संशय नहीं है ॥१॥ - अज्ञान से मोक्ष होती है, मुक्त जीवोंके ज्ञान नहीं है । मुक्त जीवों का पुनरागमन और भवभव में भ्रमण नहीं होता है । जिन दीक्षा सम्यक्त्व रूप गुणसे विशुद्ध रहती है अथवा सम्यग्दर्शन के निःशङ्कन निःकांक्षित, निर्विचिकित्सित, अमूढदृष्टि, उपगूहन, स्थिति - करण, वात्सल्य और प्रभावना इन आठ गुणोंके द्वारा विशुद्ध-विशेषरूप १-२. जी काण्डे नेमिचास्य । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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