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________________ २ -४.५२] बोषप्रामृतम् कियानलयनिवासा) परेण केनचिकृते निलये उपाश्रये निवासः स्थितियस्यां सा पररुतनिलयनिवासा सर्पवत् । ( पवजा एरिसा भणिया) प्रज्या दीक्षेदशी भणिता प्रतिपादिता प्रियकारिणीपुत्रेणेति शेषः । उवसमखमदमजुत्ता सरीरसक्कारवज्जिया रुक्खा । मयरायदोसरहिया पव्वज्जा एरिसा भणिया ॥५२॥ उपशमक्षमादमयुक्ता शरीरसंस्कारवजिता रुक्षा । मदरागदोषरहिता प्रव्रज्या। ईदृशी भणिता॥ ( उसमखमदमजुत्ता) उपशमेन कर्मक्षयेण निर्जरया संवरेण अक्रूरपरिपामेन वा युक्ता, क्षमया उत्तमक्षमया युक्ता । उक्तं च शुभचन्द्रेण योगिना 'आकृष्टोऽहं हतो नैव हतो वा न द्विधाकृतः । मारितो न हतो धर्मो मदीयोऽनेन बन्धुना ॥१॥ दमेन युक्ता जितेन्द्रिया व्रतोपपन्ना वा। ( सरीरसक्कारवज्जिया) शरीरसंस्कारवजिता दन्तनखकैशमुखाद्यवयशृङ्गाररहिता। (रुक्खा) तैलाद्यभ्यंग गुफा तथा वृक्षको कोटर आदि अपने आप बने हुए अथवा किसी अन्य धर्मात्मा के द्वारा बनवाये हुए मठ आदि में निवास करता है। प्रियकारिणी के पुत्र भगवान् महावीर ने जिनदीक्षा का स्वरूप ऐसा कहा है ॥ ५१ ॥ गाचार्य-जो उपशम, क्षमा और दम से सहित है, शरीरके संस्कार से रहित है, रुक्ष है, और मद, राग, द्वेष अथवा दोषोंसे रहित है, वह जिनदीक्षा कही गई है ॥५२॥ विशेषा--जिन-दोक्षा, उपशम अर्थात् कर्मोके क्षय, निर्जरा, संवर अथवा दया रूप परिणाम तथा उत्तम क्षमा से युक्त है । जैसा कि शुभचन्द्र योगी ने कहा है बाकृष्टोऽहं-किसी दूसरेके द्वारा उपसर्ग किये जानेपर मुनिराज इस प्रकार विचार करते हैं कि इस भाईने मुझे खींचा ही तो है मारा नहीं है, अथवा मारा ही तो है मेरे दो टुकड़े तो नहीं किये, अथवा दो टुकड़े कर मारा ही तो है मेरा धर्म तो नहीं नष्ट किया ॥१॥ · दमका अर्थ इन्द्रियोंको जीतना अथवा व्रत धारण करना है । जिनदीक्षा दमसे सहित है-इन्द्रियों को जीतने वाली अथवा अहिंसा आदि १. यशस्ति लकचम्प्याम् । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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