SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षट्नाभृते [४.३२तित्थयरा तप्पियरा हलहर चक्की य अद्धचक्की य । देवा य भूयभूमा आहारो अस्थि पत्थि णीहारो। तथा तीर्थकराणां श्मश्रुणी कूर्चश्च न भवति, शिरसि कुन्तलास्तु भवन्ति । तथा चोक्तम् देवा वि य नेरइया हलहरचक्की य तह य तित्थयरा । सब्वे केसवरामा कामा निक्कुंचिया होति ॥ क्षीरगौररुधिरमांसत्वं, समचतुरस्रसंस्थानं, वर्षभनाराच-सहननं, सुरूपता, सुगन्धता, सुलक्षणत्वम्, अनन्तवीर्य, प्रियहितवादित्वं, चेति दशातिशया जन्मतोऽपि स्वामिनः शरीरस्य । ___ गव्यूतिशत-चतुष्टयसुभिक्षता । गगनगमनम् । अप्राणिवधः । कवलाहारो न भवति-भोजनं नास्ति । उपसर्गों न भवति । केवलिनामुपसर्ग भुक्ति च ये कथयन्ति ते -'प्रत्युक्ता भवन्ति । चतुर्मुखत्वम् । सर्वविद्यानां परमेश्वरत्वम् । अच्छायत्वंदर्पणे मुख-प्रतिविम्बं न भवति शरीरच्छाया च न भवति । चक्षुषि मेषोन्मेषो न भवति । नखानां केशानां च वृद्धिनं भवति । एते दशातिशया पातिकर्मक्षयजा भवन्ति । तित्थयरा-तीर्थकर उनके माता पिता, बलभद्र, चक्रवर्ती, अद्धचक्रवर्ती, देव और भोगभूमिया इनके आहार तो होता है परन्तु नोहार नहीं होता। इसी प्रकार तीर्थंकरोंके डाढो और मूछ नहीं होती किन्तु शिर पर धुन्धुराले बाल होते हैं । जैसा कि कहा गया है देवावि य-देव, नारकी, हलधर-बलभद्र, चक्रवर्ती, अर्धचक्रवर्ती, सब नारायण और कामदेव ये डाढ़ी मूछ से रहित होते हैं। __३ दूधके समान सफेद खून और मांसका होना ४ समचतुरस्र-संस्थान का होना ५ वज्रर्षभनाराच संहननका होना ६ सुन्दर रूपका होना ७ सुगन्धित शरीरका होना ८ उत्तम लक्षणोंका होना ९ अनन्त बल होना और १० प्रिय तथा हितकर वचन बोलना। ये दश अतिशय तीर्थंकर भगवान्के शरीर में जन्मसे ही होते हैं। अब केवलज्ञान-सम्बन्धी दश अतिशय कहते हैं १ चारसौ गव्यूति पर्यन्त सुभिक्षका होना २ आकाश में गमन होना ३ प्राणीका वध नहीं होना ४ कवलाहार का न होना ५ उपसर्ग नहीं होना। १. क प्रती 'प्रत्यक्ता' इति संशोधित केनापि । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy