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________________ - १७ - १३२० के विस्तृत लेख संख्या १०५ में अनेक आचार्योंके नामोल्लेख सहित यह उत्कीर्ण है यः पुष्पदन्तेन च भूतबल्याख्येनापि शिष्य-द्वितयेन रेजे। फलप्रदानाय जगज्जनानां प्राप्तोऽङ्कराम्यामिवकल्पभूजः ॥२५॥ अर्हबलिस्सङ्घचतुर्विधं स श्रीकोण्डकुण्डान्वयमूलसङघं । कालस्वभावादिह जायमानद्वेषतराल्पीकरणाय चक्रे ॥२६॥' इस तरह आचार्य कुन्दकुन्द और कुन्दकुन्दान्वयका उल्लेख अनेकों शिलालेखोंमें है। उपयुक्त उल्लेखोंके अतिरिक्त महाराष्ट्र, मैसूर, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गुजरात, दिल्ली आदि स्थानोंके शिलालेखोंमें आ० कुन्दकुन्दका और इनके अन्वयका उल्लेख है। इन शिलालेखोंको जैन शिलालेख संग्रह भाग ५ में देखा जा सकता है। कुन्दकुन्दाचार्य के नामोल्लेख तथा उनकी यशोगाथासे सम्बन्धित शिलालेख दृष्टव्य है यह श्रवणबेलगोलके चन्द्रगिरि पर्वतपर पार्श्वनाथ बस्तिमें एक स्तम्भलेख सं० ५४, जो कि शक सं० १०५० का है, इसमें कहा है वन्द्योविभुम्भुवि न कैरिह कौण्ड कुन्दः । कुन्द-प्रभा-प्रणयि-कोति-विभूषिताशः । , यश्चारु-चारण-कराम्बुजवञ्चरीकश्चक्रे श्रुतस्य भरते प्रयतः प्रतिष्ठाम् ॥५॥ ___अर्थात् कुन्दपुष्पकी प्रभा धारण करनेवाली जिनकी कीति द्वारा दिशायें विभूषित हुई हैं, जो चारणोंके-चारण ऋद्धिधारी महामुनियोंके सुन्दर करकमलों के भ्रमर थे और जिन पवित्रात्माने भरतक्षेत्रमें श्रुतकी प्रतिष्ठा की, वे विभु कुन्दकुन्दाचार्य इस पृथ्वीपर किसके द्वारा वन्द्य नहीं हैं ? विन्ध्यगिरि पर्वतपर सिद्धरबस्तीमें दक्षिण ओरके एक स्तम्भपर शक सं० १३३५ के लेख सं० १०८ में कहा है तदीयवंशाकरतः प्रसिद्धादभूददोषा यतिरत्नमाला । बभौ यदन्तमणिबन्मुनीन्द्रस्य कुण्डकुन्दोदित चण्डदण्डः ॥१०॥ १. वही भाग १. पृ० १९९. २. वही भाग ५. पृ० ३५, ३८, ५४, ५६, ५७, ५८, ६३, ७२, ७३, ७५, ८४, ९२, १०२, १०५, ११०, ११२, ११४. ३. वही भाग १. १० १०२. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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