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-४. १३] बोधप्राभृतम्
( सासय सुक्ख अदेहा ) शाश्वतसुखा अविनश्वरसुखाः, अदेहा देहरहिताः मानमयामूर्तय इत्यर्थः । ( मुक्का कम्मट्ठबंधेहि ) मुक्ताः कर्माष्टबन्धनैः ॥१२॥ आगे इन्हीं सिद्धोंका और भी वर्णन करते हैंणिरुवममचलमखोहा निम्मिविया जंगमेण स्वेण । सिद्धठाणम्मि ठिया वोसरपडिमा धुवा सिद्धा ॥१३॥ निरुपमा अचला अक्षोभा निर्मापिता अजङ्गमेन रूपेण । सिद्धस्थाने स्थिता व्युत्सर्गप्रतिमा ध्रुवाः सिद्धाः ॥१३॥ (णिरुखममचलमखोहा) निरुपमा उपमारहिताः। इदृशः पुमान् कोऽपि नास्ति येन सिद्धा उपमीयन्ते अचलाः स्वस्थानादासुरोकोटितमं भागमपि न परतो गच्छन्ति । अखोहा-अक्षोभाः न क्षोभं प्राप्नुवन्ति । उक्तं च समन्तभद्रेणोत्सर्पिणीकाले आगामिनि भविष्यतीर्थकरपरमदेवेन--
काले कल्पशतेऽपि च गते शिवानां न विक्रिया लक्ष्या। उत्पातोऽपि यदि स्यात्वलोक्यसंभ्रान्तिकरणपटुः ॥१॥
को तीन काल में जितना सुख होता है सिद्धपरमेष्ठी के एक क्षणका सुख उससे अनन्तगुणा होता है।
सिद्ध परमेष्ठी शाश्वत--सुख हैं-अविनाशी सुख से सहित हैं, शरीर रहित हैं ज्ञानमयमूर्ति के धारक हैं और आठ कर्मोके बन्धन से युक्त हैं। ऐसे सिद्ध भगवान् सिद्ध प्रतिमा कहलाते हैं ॥१२॥
गावाचे सिद्धपरमेष्ठी निरुपम हैं, अचल हैं, क्षोभ रहित है, (संसारावस्था के अन्तिमक्षणरूप उपादान से ) निर्मापित हैं, अजंगमस्म से सिद्धस्थान में स्थित हैं, कायोत्सर्ग अथवा पद्मासन मुद्रा में स्थित हैं और शाश्वत हैं ॥१३॥
विशेषार्य-सिद्ध भगवान् निरुपम हैं-उपमारहित हैं। ऐसा कोई पुरुष नहीं जिससे सिद्धोंकी उपमा को जा सके । अचल हैं-अपने स्थान से सरसोंकी अनी के एक भाग भी इधर उधर नहीं जाते हैं । अक्षोभ हैंक्षोभसे रहित हैं । जैसा कि आगामी उत्सर्पिणी कालमें तीर्थकर परमदेव होने वाले समन्तभद्राचार्य ने कहा है
काले यदि तीनों लोकों में हल-चल मचा देने में समर्थ उत्पात भी , हो तो भी सैकड़ों कल्पकाल व्यतीत हो जाने पर भी मुक्त जीवोंमें विकार दृष्टिगोचर नहीं होता। वे सिद्ध भगवान स्थिर रूपसे निर्मापित हैं,
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