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________________ -२. २५] चारित्रप्राभूतम् ज्ञातव्यम् । ( विदियं च तवेह पोसहं भणियं ) द्वितीयं च तथैव प्रोषधोपवासं शिक्षाव्रतं भणितं प्रतिपादितं अष्टम्यां चतुर्दश्यां च । तदपि त्रिविधं, चतुविधाहारपरिवर्जनमुत्कृष्टं, जल-सहितं मध्यमं, आचाम्लं जघन्यं प्रोषधोपवासं भवति यथाशक्ति कर्तव्यम् । ( तइयं च अतिहिपुज्ज) तृतीयं चातिथिपूज्यं, न विद्यते तिथिः प्रतिपदादिका यस्य सोऽतिथिः अथवा 'संयम-यात्रार्थमतति गच्छति उद्दण्डचयाँ प्रतिमा में जो सामायिक होता है वह दिनमें एक बार, दो बार अथवा तीन बार होता है। परन्तु सामायिक प्रतिमामें जो सामायिक कहा गया है, वह नियमसे तीन बार करना चाहिये । दूसरा शिक्षा-व्रत प्रोषधोपवास कहा गया है। प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशोको यह व्रत करना पड़ता है। प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्यके भेदसे तीन प्रकारका कहा गया है। अन्न-पानखाद्य और लेह्य इन चारों प्रकारके आहारका त्याग करना उत्कृष्ट प्रोषधोपवास है। जिसमें पर्वके दिन जल लिया जाता है, वह मध्यम प्रोषघोषवास है और जिसमें आचाम्लाहार किया जाता है वह जघन्य प्रोष धोपवास है। तीसरा शिक्षाव्रत अतिथिपूज्य अथवा अतिथि संविभाग है। जिसे प्रतिपदा आदि तिथियोंका विकल्प न हो उसे अतिथि कहते हैं अथवा संयमको प्राप्तिके लिये जो भ्रमण करते हैं अर्थात् अनुद्दिष्ट आहार की प्राप्तिके लिये जो श्रावकोंके घर चर्या करते हैं उन मुनियोंको अतिथि कहते हैं। जिसमें नवधा भक्ति और सात गुणोंसे सहित श्रावक के द्वारा उक्त अतिथि की पूजा की जाती है-उसे आहारादिसे सन्तुष्ट किया जाता है, वह अतिथि पूज्य नामका शिक्षावत है। चौथा शिक्षाबत सल्लेखना है । मरण समय काय और कषायको कृश · करना सल्लेखना है। .. [गुणवत और शिक्षाव्रतके नामोंमें विभिन्न मत पाये जाते हैं । सर्व प्रथम कुन्दकुन्द स्वामी ने दिग्व्रत, अनर्थदण्डवत और भोगोपभोगपरिमाण इन तोनको गुणव्रत माना है। इसी मतका उल्लेख समन्तभद्र स्वामी ने १. संयमलाभार्थ म० । २. प्रतिग्रह, उच्चासन, चरणप्रक्षालन, पूजन, प्रणाम, मन-वचन-काय-भोजन की शुद्धि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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