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________________ -२. २२-२४] বলিসমূহ चत्वारि भवन्ति । ( संजमचरणं च सायारं ) संयमचरणं च सागारं भवति । एतानि द्वादशवतानि पूर्वमेव सूचितानि ॥ २२ ॥ थूले तसकायवहे थूले मोसे तितिक्खथूले य। परिहारो परपिम्मे परिग्गहारंभपरिमाणं ॥ २३ ॥ स्थूले त्रसकायवधे स्थूलायां मृषायां तितिक्षास्थूले च । परिहारः परप्रेम्णि परिग्रहारम्भपरिमाणम् ।। २३ ॥ (थूले तसकायवहे ) स्थूले त्रसकायवधे । परिहार इति शब्दश्चतुष सम्बध्यते । ( थूले मोसे ) स्थूलमृषावादे परिहारः । ( तितिक्खथूले य ) तितिक्षास्थूले चौर्यस्थूले परिहारः । ( परिहारो परपिम्मे ) परिहारः क्रियते, कस्मिन् ? परप्रेम्णि परदारे। (परिग्गहारम्भपरिमाणं ) परिग्रहाणां सुवर्णादीनामारम्भाणां सेवाक षि-वाणिज्यादीनां परिमाणं क्रियते । दिसिविदिसिमाण पढम अणत्थदंडस्स वज्जणं विदियं । भोगोपभोगपरिमा इयमेव गुणव्वया तिणि ॥२४॥ . • विशेषार्थ-पाँच पापोंसे विरत होना व्रत है । वह व्रत एक देश और सर्व देशको अपेक्षा दो प्रकारका होता है। लोक में जिन्हें पाप समझा जाता है ऐसे हिंसा आदि स्थूल पापोंसे विरत होनेको अणुव्रत कहते हैं वे पांच होते हैं। जो अणुव्रतोंका उपकार करें उन्हें गुणव्रत कहते हैं । गुणव्रत तीन होते हैं। जिनसे मुनिव्रत धारण करनेकी शिक्षा मिले उन्हें शिक्षावत कहते हैं। सब मिलाकर गृहस्थ के बारह व्रत होते हैं इनका स्वरूप पहिले कह चुके हैं ॥२२॥ .. गाथार्थ-स्थूल वसवध, स्थूल असत्य कथन, स्थूल चोरी और परस्त्रोका परिहार तथा परिग्रह और आरम्भका परिमाण ये पांच अणुव्रत हैं ।। २३॥ विशेषार्थ-स्थूल रूपसे त्रस जीवों की हिंसाका त्याग करना अहिंसाणुव्रत है । स्थूलरूपसे असत्य कथनका त्याग करना सत्याणुव्रत है। स्थूल रूपसे चोरीका त्याग करना अचौर्याणुव्रत है। पर-प्रियाका त्याग करना ब्रह्मचर्याणुव्रत है और सुवर्णादि परिग्रह तथा सेवा, खेती और व्यापार ... आदिका परिमाण करना परिग्रह परिमाणाणुव्रत है ॥२३॥ गाथार्थ-दिशाओं और विदिशाओंका प्रमाण करना पहला गुणवत है। अनर्थदण्डका त्याग करना दूसरा गुणवत है और भोग तथा उपभोग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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