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षट्प्राभृते
[२. १८'अठ्ठत्तीसद्धलवा नालो दो नालिया मुहत्तं तु । ..
समऊणं तं भिण्णं अंतमुहुत्तं अणेयविहं ॥२॥ एकेन समयेन न्यूनो मुहूर्तो भिन्नमूहूर्तः कथ्यते । अन्तर्मुहर्तस्त्वनेकप्रकारः । के तेऽनेकप्रकारा अन्तर्मुहूर्तस्येत्याह-आवल्युपरि एकःसमयोऽधिको यदा भवति तदा जघन्याऽन्तर्मुहूर्तो भवति । एवमावल्युपरि यादयः समयाश्चटन्ति ते सर्वेऽप्यन्तर्मुहूर्ता भवन्ति यावत्समयोनो मुहूर्तः। एवमहोरात्रपक्षमासत्वयनवर्ष पूर्वपल्योपमसागरोपमावसपिण्युत्सपिण्यादयः कालस्य पर्याया ज्ञातव्याः । आकाशस्य तु पर्याया । घटाकाशः पटाकाशः स्तम्भाकाश इत्यादय । ( सम्मेण सद्दहदि य परिहरदि चरित्तजे दोसे ) सम्यक्त्वेन च श्रद्दधाति रोचते, न केवलं श्रद्धत्त परिहरदि यपरिहरति च । कान् ? चरित्तजे दोसे चारित्रजान् दोषानिति संबन्धः ॥१७॥
एए तिणि वि भावा हवंति जीवस्स मोहरहियस्स ।
णियगुणमाराहतो अचिरेण वि कम्म परिहरइ ॥१८॥ ~~~rrammmmmmm सात स्तोक का एक लव होता है, साढ़े अड़तोस लवकी एक नाली होती है, दो नालियोंका एक मुहूर्त होता है, एक समय कम मुहूर्तको भिन्नमुहूर्त कहते हैं । अन्तर्मुहूर्त अनेक प्रकार का होता है। __वे अन्तमहूर्तके अनेक प्रकार कौन हैं ? इस बातका स्पष्टीकरण करते हुए संस्कृत टीकाकार कहते हैं कि जब आवलि के ऊपर एक समय अधिक होता है तब जघन्य अन्तमूहूर्त होता है। इसी प्रकार आवलिके ऊपर दो आदि समय चढ़ते हैं वे सभी अन्तमुहर्त कहलाते हैं । यह क्रम एक समय कम एक मुहूर्त तक चलता रहता है । इस प्रकार दिन, रात, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, वर्ष, पूर्व, पल्योपम, सागरोपम, अवसर्पिणी तथा उत्सर्पिणी आदि काल द्रव्यके पर्याय जानना चाहिये। आकाश के पर्याय घटाकाश, पटाकाश तथा स्तम्भाकाश आदि हैं। सम्यग्दृष्टि जोव अपने सम्यक्त्व गुणके द्वारा इन द्रव्य तथा पर्यायों की श्रद्धा करता है तथा चारित्र में लगे हुए दोषोंका परिहार भी करता है ॥ १७ ॥
गावार्थ-ये तीनों भाव-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्ररूप परिणाम मोह रहित जीवके होते हैं। निज गुणकी आराधना करने वाला पुरुष अल्प कालमें ही कर्मों का क्षय कर देता है ।। १८॥ १. जीवकाण्डे ५७३, ५७४ तमौ श्लोकी ।
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