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________________ षट्प्रामृते [१. ३१गाणं णरस्स सारो सारो वि गरस्स होइ सम्मत्तं । .. सम्मत्ताओ चरणं चरणाओ होइ णिव्वाणं ॥३१॥ ज्ञानं नरस्य सारं सारमपि नरस्य भवति सम्यक्त्वम् । सम्यक्त्वतः चरण चरणतो भवति निर्वाणम् ॥३१॥ . (णाणं णरस्स सारो ) ज्ञानं नरस्य जीवस्य सारः। ( सारोवि णरस्स होइ सम्मत्तं ) सम्यग्ज्ञानादपि जीवस्य सम्यक्त्वं सारतरं भवति । 'तस्मात् ( सम्मत्ताओं चरणं) सम्यक्त्वात् चरणं चारित्र भवति तस्मात् सम्यक्त्वं विना चारित्र मरता है इससे सिद्ध होता है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र इन तीनों के मिलने पर ही मोक्ष प्राप्त होता है । [ कार्य की सिद्धि के लिये दर्शन, ज्ञान और चारित्र तीनों का मिलना आवश्यक है। इनके पृथक् पृथक् रहने पर कार्य को सिद्धि नहीं होती। एक बार वन में तीन मनुष्य पहुंचे-१. अन्धा, २. पंगु और ३ संशयालु । वन में आग लगने पर अन्धा मनुष्य भागने की चेष्टा करता है परन्तु सही सही मार्ग का ज्ञान नहीं होने से भाग नहीं पाता । पंगु मनुष्य यद्यपि सही सही रास्ता देखता है परन्तु दोनों पैरों से रहित होने के कारण भाग नहीं सकता और संशयाल मनुष्य यही निश्चय नहीं कर पाया कि यह आग लग रही है या पलाश-फूल रहे हैं अतः वह भागने को चेष्टा ही नहीं करता। इस तरह तोनों मनुष्य आग में जल कर मर जाते हैं । इस दृष्टान्त से दर्शन, ज्ञान और चारित्र तीनों की उपयोगिता सिद्ध है। कुन्दकुन्द स्वामी ने दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चारों के समा. योग को मोक्ष का कारण माना है जब कि तत्त्वार्थ-सूत्रकार उमास्वामी तथा पमनन्दी आदि आचार्यों ने दर्शन, ज्ञान और चारित्र इन तीन के समायोग को मोक्ष का कारण माना है। इसमें सिद्धान्तभेद नहीं है क्योंकि तप चारित्र का ही विशिष्ट अङ्ग है, अतः उमास्वामो आदि आचार्यों ने उसे सम्यक्चारित्र में ही अन्तर्निहित कर दिया है। ] ॥३०॥ ____ गाथार्थ-ज्ञान जीव के सारभूत है और ज्ञान को अपेक्षा सम्यक्त्व सारभूत है क्योंकि सम्यक्त्व से ही चारित्र होता है और चारित्र से निर्वाण की प्राप्ति होती है ॥३१॥ १. कस्मात् म०। २. यस्मात् म.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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