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________________ प्र. 213 प्रदक्षिणा शब्द से क्या तात्पर्य है ? उ. प्र - प्रकृष्ट, उत्कृष्ट भाव पूर्वक । दक्षिणा से जो प्रारम्भ की जाती है । प्रकृष्ट भावपूर्वक परमात्मा के से जो प्रारम्भ की जाती है, उसे प्रदक्षिणा कहते है । प्र. 214 प्रदक्षिणा परमात्मा के दायीं ओर से ही क्यों प्रारम्भ की जाती है ? उ. दाय दिशा ही मुख्य एवं पवित्र है और संसार के सभी शुभ कार्य दाहिने हाथ से ही प्रारम्भ होते है । प्र. 215 प्रदक्षिणा त्रिक को समझाइये ? उ. अनादिकाल की भव भ्रमणा को मिटाने और रत्नत्रयी (दर्शन, ज्ञान व चारित्र) को प्राप्ति हेतु, जिनेश्वर परमात्मा के दायीं ओर से प्रारम्भ कर तीन बार परमात्मा की परिक्रमा करना, प्रदक्षिणा त्रिक है 1 प्र. 216 प्रदक्षिणा के दरम्यान मन को कैसे एकाग्र करना होता है ? भ्रमर जैसे कमल के आसपास घूमकर (मंडराकर ) कमल में स्थिर होता है, वैसे ही तीन प्रदक्षिणा द्वारा मन को परमात्मा स्वरुप एकाग्र करके ठें. द्वितीय प्रदक्षिणा त्रिक स्थिर करना । प्र. 217 प्रदक्षिणा से क्या लाभ होता है ? **** चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International परमात्मा के उ. परमात्मा की प्रदक्षिणा देने से हमारे चारों ओर एक प्रकार का चुम्बकीय वर्तुल बनता है, विद्युत वर्तुल जो हमारे भीतर के कर्म वर्गणाओं को छिन्न भिन्न कर अपार कर्मों की निर्जरा करता है । दायीं ओर For Personal & Private Use Only दायीं ओर 55 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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