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________________ निर्देश दे सकते है । प्र. 208 दूसरी निसीहि प्रदक्षिणा त्रिक के पूर्व या पश्चात कब बोली जाती है ? उ. 1 प्रदक्षिणा त्रिक के पश्चात् मुल गंभारे के प्रवेश द्वार पर बोली जाती है। प्र. 209 द्वितीय निसीहि किसके निषेधार्थ और क्यों कही जाती है ? केशर, पुष्पादि द्रव्य सामाग्री लेने के पश्चात् गर्भ द्वार पर जिनमंदिर सम्बन्धित समस्त कार्यों के निषेधार्थ और मात्र परमात्मा की द्रव्य भक्ति में एकाकार होने के लिए कही जाती है । प्र. 210 तीसरी निसीहि कब कही जाती है ? उ. उ. परमात्मा की अष्ट प्रकार की पूजा (द्रव्य पूजा) के पश्चात् तथा भाव पूजा (चैत्यवंदन) से पूर्व कही जाती है । प्र. 211 जिनमंदिर में कर्म बन्धन से बचने हेतु कौन-कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए ? 1. निसीहि उच्चारण के पश्चात् जिनमंदिर में संसार सम्बन्धित - घरपरिवार, दुकान-मकान, व्यापार-व्यवसाय, स्वस्थता - अस्वस्थता, कुशल-क्षेम, सगे-सम्बन्धित सुख - दुख आदि की बातें नही करनी चाहिए | 2. लड़का-लड़की आदि दिखाना, सगाई- शादी तय करना ऐसे संसार वर्धक कार्य जिनमंदिर में नही करने चाहिए । 3. दुकान, घर, पार्टी, शादी, शोक, सम्मेलन आदि में पधारने हेतु आमंत्रण नही देना चाहिए । 4. दूसरों के दोषों को अनावृत (प्रकट) करने वाले मार्मिक कथन, चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी उ. Jain Education International For Personal & Private Use Only 53 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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