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9. देव गुरु बहुमान - देव-गुरु के प्रति हृदय में बहुमान भाव रखने
वाले। 10. गम्भीराशय - तुच्छ विचार एवं क्षुद्ध मान्यता से रहित अरिहंत
परमात्मा की आत्मा गंभीर, उच्च विचारों से युक्त होती है । प्र.1498 'लोक' किसे कहते है ? उ. 'धर्मादीनां वृत्तिर्द्रव्याणां भवति यत्र तत् क्षेत्रम् । तैर्द्रव्यैः सह लोकः'
अर्थात् धर्मास्तिकायादि द्रव्य जिस क्षेत्र में रहते है उस क्षेत्र को लोक
कहते है। प्र.1499 'लोगुत्तमाणं' पद में 'लोक' शब्द से क्या तात्पर्य है ? उ... 'भव्य जीव-लोक' यहाँ 'लोक' शब्द का अर्थ है । प्र.1500 तीर्थंकर परमात्मा अचिन्त्य शक्ति सम्पन्न होने पर भी वे कुछ ही
भव्य जीवों का योगक्षेम कर सकते है समस्त भव्य जीवों का क्यों - नहीं ?
कोई भी तीर्थंकर परमात्मा समस्त भव्य जीवों का योगक्षेम नहीं कर सकते है । यदि एक ही तीर्थंकर परमात्मा से समस्त जीवों का योगक्षेम हो जाता तो समस्त भव्य जीवों की मुक्ति हो जाती; क्योंकि योगक्षेम से मुक्ति साध्य होती है । अत: भूतकाल में ही किसी तीर्थंकर परमात्मा के द्वारा सर्व भव्यों को पूर्वाक्त बीजाधान अंकुरोत्पत्ति-पोषण इत्यादि का योगक्षेम हो जाने पर एक पुद्गल परावर्त काल के भीतर ही समस्त
भव्य जीवों की मुक्ति हो गई होती । अतः जीवों की अपनी भवितव्यता _' के आधार पर ही उनका योगक्षेम काल परिपाकानुसार होता है । प्र.1501 योगक्षेम से क्या तात्पर्य है ? उ. योग यानि नया प्राप्त होना, क्षेम यानि प्राप्ति का रक्षण करना । बीज ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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