SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 31. पर दोष 32. संधि दोष - सन्धियों से शुन्य पद । वृहत्कल्प भाष्य । प्र.111 सूत्र व्याख्या के षड्विध लक्षण कौन से होते है ? उ. 1. संहिता 2. पद 3. पदार्थ 4. पद विग्रह 5. चालना 6. प्रसिद्धि ___ (प्रत्यवस्थान)। प्र.112 संहिता किसे कहते है ? । उ. अस्खलित रुप से पदों का उच्चारण करना यानि सूत्र के शुद्ध स्पष्ट उच्चारण को संहिता कहते है । जैसे - नमोऽस्त्वर्हद्भ्यः (नमोत्थुणं अरहंताणं)। . प्र.113 पद से क्या तात्पर्य है ? उ. एक-एक पद का निरुपण करना अर्थात् एक-एक पद अलग-अलग करके उच्चारित करना या बताना । जैसे - नमोऽस्तवर्हद्भ्य का नमः, अस्तु, अर्हद्भ्यः (नमो अत्थुणं अरिहंताणं) । प्र.114 पदार्थ किसे कहते है ? उ. प्रत्येक पद का अर्थ करना, पदार्थ है। जैसे - नमः यह पद पूजा के . . . अर्थ में प्रयुक्त है। पूजा क्या है ? 'द्रव्यभाव सङ्कोच', यह पूजा है। प्र.115 पद विग्रह से क्या तात्पर्य है ? .उ. संयुक्त पदों का विभाग रुप विस्तार यानि प्रत्येक पद की व्यूत्पत्ति, अनेक ... पदों का एक पद समास करना अर्थात् समास विग्रह करना, पद विग्रह कहलाता है। : प्र.116 चालना किसे कहते है ? उ. प्रश्नोत्तर द्वारा सूत्र और अर्थ को स्पष्ट करना । प्र.117 प्रसिद्धि (प्रत्यवस्थान) से क्या तात्पर्य है ? उ. सूत्र और उसके अर्थ की विविध युक्तियों द्वारा स्थापन करना, अर्थात् ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 29 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy