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प्र.1451 'नमोत्थुणं' सूत्र में भगवंताणं' विशेषण का प्रयोग क्यों किया है ? उ. भाव अरिहंत को नमस्कार हो, ऐसा बतलाने के लिए 'भगवंताणं'
विशेषण का प्रयोग किया है। प्र.1452 'भगवंताणं' में 'भंग' शब्द के क्या-क्या अर्थ होते है ?
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य, रूपस्य यशसः श्रियः ।। धर्मस्याय प्रयत्लस्य, षण्णां भग इतीङ्गना ॥ ललीत विस्तरा अर्थात् समग्र ऐश्वर्य, समग्र रूप, समग्र यश, समग्र श्री, समग्र धर्म और समग्र प्रयत्न, ये छ: 'भग' शब्द के अर्थ होते है। योगशास्त्र (3-123) टीकानुसार 'भग' शब्द के चौदह अर्थ निम्न होते है - 1. सूर्य 2. ज्ञान 3. माहात्म्य 4. यश 5. वैराग्य 6. मुक्ति 7. रूप 8. वीर्य 9. प्रयत्न 10. इच्छा !1. श्री 12. धर्म 13. ऐश्वर्य 14. योनि । सूर्य व योनि इन दो के अलावा शेष बारह अर्थ ललीत विस्तरा में मान्य
प्र.1453 अरिहंत परमात्मा को समग्र ऐश्वर्य का धनी क्यों कहा है ? उ. देव निर्मित समवसरण व अष्ट प्रातिहार्य - अशोक वृक्ष, सुरपुष्पवृष्टि,
दिव्य ध्वनि आदि ऐश्वर्य के भोक्ता मात्र अरिहंत तीर्थंकर परमात्मा ही
होते है, इसलिए परमात्मा को समग्र ऐश्वर्यशाली कहा है। प्र.1454 तीर्थंकर परमात्मा को सृष्टि का समग्र रूपवान् क्यों कहा गया है ? उ.. समस्त देवताओं के समग्र सौन्दर्य को, दिव्य प्रभाव से सम्मिलित करके
उस सारभूत रूप से यदि एक अंगुठे का निर्माण किया जाए और उस
अंगुष्ठ की तुलना परमात्मा के चरण अंगुष्ठ से की जाए तब भी परमात्मा . के रूप लावण्य (सौन्दर्य) के सामने देवताओं का सौन्दर्य मानो धधकते ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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