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________________ होता है वही सबसे आगे आता है । 25. जहाँ-जहाँ परमात्मा विचरण करते है वहाँ-वहाँ कांटे अधोमुख हो जाते है । भगवान के केश, रोम, नख सदा अवस्थित ही रहते है ( बढ़ते नहीं) । उ. 26. 27. पांचों इन्द्रियों के विषय सदा अनुकूल मिलते है । 28. जहाँ-जहाँ परमात्मा विचरण करते है वहाँ-वहाँ धूलि का शमन करने के लिए गंधोदक की वृष्टि होती है । बसन्त आदि छः ऋतुएँ शरीरानुकूल होती है तथा प्रत्येक ऋतु विकसित होने वाले फूलों की समृद्धि से मनोहर होती है । 30. पांच वर्ण के फूलों की वृष्टि होती है I 31. पक्षीगण प्रदक्षिणा देते हुए उड़ते है । 32. संवर्तक वायु के द्वारा देवता योजन प्रमाण क्षेत्र को विशुद्ध रखते है । 29. 33. जहाँ परमात्मा विचरण करते है, वहाँ वृक्षों की शाखाएँ इस प्रकार झुकी होती है जैसे वे परमात्मा को प्रणाम कर रही हो । 34. जहाँ-जहाँ परमात्मा विचरण करते है, वहाँ-वहाँ मेघ गर्जना की तरह गंभीर व भुवन व्यापी घोष वाली देव दुन्दुभी बजती है । पूर्वोक्त 19 अतिशय देवकृत होते है । प्र.1445 परमात्मा देवकृत अष्टप्रातिहार्य, अतिशयादि का उपभोग करते है तो उन्हें क्या आधाकर्मी दोष नहीं लगता है ? नहीं लगता है, क्योंकि ये सब तीर्थंकर परमात्मा के तप प्रभाव, उनके 'तीर्थंकर नामकर्म' के अतिशय प्रभाव के कारण ही उत्पन्न होते है । प्र. 1446 तीर्थंकर परमात्मा और अष्ट प्रातिहार्य के बीच कौन सा सम्बन्ध चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only 409 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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