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दृष्टान्तों से मिश्रित वार्ण
उपदेश देते हुए थकावट का अनुभव :
करना ।
प्रथम सात अतिशय शब्द की अपेक्षा से है और शेष 28 अतिशय अ
की अपेक्षा से है ।
प्र. 1436 परमात्मा के चार मूल अतिशय कौन से है ?
उ.
परमात्मा के चार मूल अतिशय
पूजातिशय और वचनातिशय है ।
35. अखेद
404
1..
पायपगमातिशय अपाय उपद्रवों का अपगम - नाश
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अपायापगमातिशय, ज्ञानातिशय
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अतिशय विशिष्ट गुण ।
उपद्रवों का नाश करने वाले विशिष्ट गुण परमात्मा में पाये जाते है । ये दो प्रकार के होते है - स्वाश्रयी और पराश्रयी । भगवान केवलज्ञान द्वारा लोक- अलोक का संपूर्ण
2. ज्ञानातिशय
स्वरूप जानते है ।
3. पूजातिशय श्री तीर्थंकर परमात्मा सबके पूज्य है । अर्थात् तीर्थंकर परमात्मा राजा, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, देवता तथा इन्द्र इन समस्त के द्वारा पूजनीय है।
4. वचनातिशय श्री देवाधिदेव तीर्थंकर परमात्मा की वाणी कं देव, मनुष्य और समस्त तिर्यंच सब अपनी-अपनी भाषा में समझ हैं । परमात्मा की वाणी संस्कारादि 35 गुणों से संस्कारित होती है
प्र. 1437 स्वाश्रयी व पराश्रयी अपायपगमातिशय किसे कहते है ?
उ.
1 स्वाश्रयी अपायपगमातिशय स्वयं से सम्बन्धित समस्त रोगों क
परिशिष
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