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________________ सभा में कभी काम क्रोडा भी देवता गण नही करते हैं । प्र. 1432 प्रमाणित कीजिए द्रव्य निक्षेप वंदनीय है ? उ. उ. परमात्मा के निर्वाण के पश्चात् परमात्मा के निर्जीव शरीर को सम्यग्दृष्टि इन्द्र देवता नमुत्थुणं सूत्र से वंदन करते है । प्र.1433 अरिहंत परमात्मा किन अठारह दोषों से मुक्त ( रहित ) होते है ? लाभान्तराय 3. भोगांतराय 4. उपभोगांतराय 5. वीर्यान्तराय 1. दानान्तराय अन्तराय कर्म के क्षय हो जाने से पांचों दोष नही रहते । 6. हास्य 7. रति 8. अरति 9. शोक 10. भय 11. जुगुप्सा (चरित्र मोहनीय कर्म के क्षय से उपरोक्त छः दोष नहीं रहते ।) 12. काम (स्त्री वेद, पुरूष वेद और नपुंसक वेद, चारित्र मोहनीय की इन तीनों कर्म प्रकृतियों के क्षय हो जाने से काम - विकार का सर्वथा अभाव हो जाता है ।) 398 ज्ञाता धर्मकथा वृत्ति- मल्लिनाथ निर्वाण अधिकार 13. मिथ्यात्व (दर्शन मोहनीय कर्म प्रकृति के क्षय हो जाने से ) 14. अज्ञान (ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से अज्ञान का अभाव ) 15. निद्रा (दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से निद्रा - दोष का अभाव ) 16. अविरति (चारित्र मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय होन से ) 17. राग 18. द्वेष ( चारित्र मोहनीय कर्म में से कषाय के क्षय हो जाने से ये दोनों दोष नहीं रहते है ।) Jain Education International लोकप्रकाश सर्ग 30, गाथा 1002-1003, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश अन्य प्रकार से 18 दोषों से रहित तीर्थंकर परमात्मा For Personal & Private Use Only परिशिष्ट www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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