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________________ उ. निम्न सूत्र - 1. आवश्यक सूत्र 2. दशवैकालिक सूत्र 3. उतराध्ययन सूत्र 4. पिंड नियुक्ति । प्र.85 उपरोक्त चार सूत्रों को मूल सूत्र क्यों कहा जाता है ? उ. इन सूत्रों में मुख्य रुप से श्रमणाचार सम्बन्धी मूलगुणों - महाव्रत, समिति, गुप्ति आदि का निरुपण है और ये ग्रन्थ श्रमण की दिनचर्या में सहयोगी बनते है, इनका अध्ययन संयम के शैशव में आवश्यक है, अतः इन्हें मूल सूत्र कहा जाता है। प्र.86 मूल आगमों के होने पर भी छेद सूत्रों को महत्व क्यों दिया गया उ. अंग, उपाग आदि मूल सूत्र मार्ग दर्शक और प्रेरक है। परन्तु साधु संयम में स्खलना करता है और वह अपनी स्खलना की शुद्धि करना चाहता है, तब मूल आगम उसे दिशा निर्देश नही दे सकते । दिशा निर्देश और स्खलना की विशुद्धि छेद सूत्रों द्वारा ही हो सकती है। छेद सूत्र प्रायश्चित्त सूत्र है और प्रत्येक स्खलना की विशुद्धि के लिए साधक को प्रायश्चित्त देकर स्खलना का परिमार्जन और विशोधिकर, साधक को हल्का / शुद्ध कर देता है, इसलिए इनको महत्व दिया गया है। प्र.87 छेद सूत्रों की वाचना के योग्य कौन होते है ? .. उ. परिणामिक शिष्य ही छेद सूत्रों की वाचना योग्य होते है। - प्र.88 शिष्यं कितने प्रकार के होते है ? .. उ. निर्ग्रन्थ प्रवचन के अनुसार शिष्य तीन प्रकार के होते है - 1. परिणामक 2. अपरिणामक 3. अतिपरिणामक । .प्र.89 परिणामक (परिणत) से क्या तात्पर्य है ? उ. जिसका ज्ञान परिपक्व है, जो उत्सर्ग और अपवाद को जानता है, जो ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 23 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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