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________________ राग द्वेष भर्यो मोह वैरी नडयो । लोकनी, रीतमां घणुए रातो ॥ . क्रोध वश धमधम्यो शुद्ध गुण नवि रम्यो । भम्यो भवमाहे हुं विषय मातो। श्रीमद् देवचन्द्रजी म. रचित महावीर जिन स्तवन गाथा ? 8. प्रणिधान पुरस्सर (एकाग्रतापूर्वक)- 'उपयोगप्रधानैरिति' उपयोग प्रधान पूर्वक स्तवन, स्तोत्र आदि बोलना चाहिए। 9. विचित्र अर्थ युक्त- 'बहुविधार्थ युक्तैः' अनेक प्रकार के अर्थों से युक्त ऐसे स्तोत्र से परमात्मा का गुणगान करना चाहिए । जैसेप्रीणन्तु जन्तुजातं नखसुभगा भावुका न नखसुभगाः ।। अभिजातस्यापि सदा पादाः श्री नाभिजातस्य । श्री जिनपति विरचितै विरोधालकारमण्डितैः ऋषभस्तोत्रादिभिः। 10. अस्खलितादि गुण युक्त- 'अस्खलिताऽमिलिताऽव्यव्या मेडिता दिलक्षणाः ।' स्तवनादि बोलते समय अक्षर स्खलना नही करनी चाहिए। एक-एक पद अलग-अलग बोलना चाहिए । स्तोत्राक्षरों का उच्चारण अत्यन्त शुद्ध और स्पष्ट हो एवं समुचित न्यूनाधिक भार और विराम देकर उच्चारित हो । । प्र.1289 स्तुति और स्तोत्र कैसे होने चाहिए ? उ. सारा पुण थूइथोत्ता, गंभीर पयत्थ विरइया जे उ । सब्भूय गुणुक्कित्तण रुवा, खलु ते जिणाणं तु ॥ सारभूत स्तुति, स्तोत्र अर्थात् गंभीर अर्थवाले और सद्भूत वास्तविक गुणों से युक्त स्तुति, स्तोत्र होने चाहिए। क्योंकि सारभूत स्तुति-स्तोत्र से शुभ परिणाम उत्पन्न होते है। ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ . बावीसवा स्तवन द्वार 352 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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