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________________ उ. 'सक्कय भासाबद्धो, गंभीरत्थो थओ ति विक्खाओ । पायय भासबद्धं, थोत्तं विविहेहिं छंदेहि ॥' चै. महाभाष्य संस्कृत भाषा में रचित गंभीर अर्थ वाले श्लोक, स्तव कहलाते है। जबकि प्राकृत भाषा में विविध छंदों से रचित रचना को स्तोत्र कहते है। प्र.1286 संस्तव किसे कहते है ? उ. 'संस्तवनं संस्तवः' अर्थात् सम्यक् प्रकार से स्तवन करना ही संस्तव कहलाता है। 'मनसा ज्ञान चारित्र गुणोद्भावनं प्रशंसा, भूताभूत गुणोद्भाव वचनं संस्तवः ।' अर्थात् ज्ञान और चारित्र का मन से उद्भावन करना, प्रशंसा है, और जो गुण हैं या जो गुण नहीं हैं, इन दोनों का सद्भाव बतलाते हुए कथन करना, संस्तव है। रा.वा. 7/23/1/552/12 प्र.1287 स्तुति किसे कहते है ? उ. गुण-स्तोकं सदुल्लङ्घ्य तद्बहुत्वकथां स्तुतिः । अर्थात् विद्यमान गुणों की अल्पता का उल्लंघन करके जो उनके बहुत्व की कथा की जाती है उसे लोक में स्तुति कहते है। आराध्य के गुणों की प्रशंसा करना, स्तुति है । लोक में अतिशयोक्ति पूर्ण प्रशंसा को ही स्तुति कहते है । प्र.1288 परमात्मा का स्तवन कैसा होना चाहिए ? उ.. परमात्मा का स्तवन निम्न गुणों से युक्त होना चाहिए - 'पिण्ड क्रिया गुण गतैर्गम्भीरै विविध वर्ण संयुक्तैः आशय विशुद्धि जनकैः संवेग परायणैः पुण्यैः । 9/6 पाप निवेदन गर्भः प्रणिधान पुरस्सरै विचित्राथैः । ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी . . 349 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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