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________________ स्तुति करना, नोआगमभाव च· शतिस्तव है । प्र.1277 चतुर्विंशतिस्तव के कितने भेद है ? उ. तीन भेद है उ. - 1. मन स्तव 'मनसा चतुर्विंशति तीर्थकृतां गुणानुस्मरणं' अर्थात् मन से चौबीस तीर्थंकर परमात्मा के गुणों का स्मरण करना, मन स्तव है। - 1. मन स्तव, 2. वचन स्तव, 3. काय स्तव । 2. वचन स्तव 'लोगस्स उज्जोअगरे' इत्यादि श्लोकों में कहे हुए तीर्थंकर परमात्मा की स्तुति बोलना, वचन स्तव है । 3. काय स्तंव - ललाट पर हाथ रखकर जिनेश्वर परमात्मा को नमस्कार करना, काय स्तव है । श.आ./ वि /506/728/11 प्र.1278 स्तव के कितने भेद है ? भगवती आराधना वृत्ति 21/6/274/27 - 'णामट्ठवणी दव्वे खेत्ते काले य होदि य भावे य ।' अर्थात् नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से चौबीस तीर्थंकर परमात्मा के स्तवन के छः भेद है । मू.आ./538 प्र. 1279 नाम स्तव किसे कहते है ? उ. Jain Education International चौबीस तीर्थंकर परमात्मा के गुणों के अनुरुप उनके एक हजार आठ नामों को ग्रहण करना, नाम स्तव है । अर्थात् चौबीस तीर्थंकर - परमात्मा वास्तविक अर्थ वाले एक हजार आठ नामों से स्तवना करना, नाम स्तव कहलाता है । कषाय पाहुड 1/1, 1/485/110/1 प्र.1280 स्थापना स्तव किसे कहते है ? उ. सद्भाव, असद्भाव स्थापना में स्थापित (प्रतिष्ठित ) जिन प्रतिमा जो चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी For Personal & Private Use Only 347 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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