________________
मू.आ.656-661,भ.आ./वि.116/278/22 चा.सा/158-1, अन.ध.8/72-73/80 प्र.1268 कायोत्सर्ग क्यों किया जाता है ? उ. संयमी जीवन को अधिकाधिक परिष्कृत करने के लिए, आत्मा को माया, .
मिथ्यात्व व निदान शल्य से मुक्त करने के लिए तथा पाप कर्मों का
निर्घात करने के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है । प्र.1269 कायोत्सर्ग के समय प्रावरण नही रखना चाहिए. ऐसा किसने कहा
उ. आचार्य धर्मदास ने उपदेशमाला ग्रन्थ में कहा । प्र.1270 लोगस्स का ध्यान (कायोत्सर्ग) श्वासोश्वास की अपेक्षा से कैसे
किया जाता है ? प्रथम श्वास लेते समय मन में 'लोगस्स उज्जोअगरे' अर्थात् एक पद (चरण) और श्वास छोडते समय 'धम्मतित्थयो जिणे' कहा जाता है। द्वितीय श्वास लेते समय 'अरिहंते कित्तइस्सं' और छोडते समय 'चउवीसं पि केवली' का ध्यान । इस प्रकार लोगस्स का कायोत्सर्ग किया जाता
उ.
प्र.1271 मरण के बिना काय का त्याग कैसे ? अर्थात् सम्पूर्ण आयुष्य के
समाप्त होने पर ही आत्मा शरीर को छोडती है अन्य समय में नही, तब अन्य समय में कायोत्सर्ग का कथन कैसे ? शरीर त्याग न करते हुए भी, इसके अशुचित्व, अनित्यत्व, विनाशशील, असारत्व, दुःख हेतुत्व, अनन्त संसार परिभ्रमण हेतुत्व आदि का चिंतन करते हुए कि यह शरीर मेरा नही है और न ही मैं इसका स्वामी हूँ इसमें
वासित आत्मा ही मेरी अपनी है ऐसा संकल्प मन में उत्पन्न होने से ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
इक्कवीसवाँ कायोत्सर्ग प्रमाण द्वार
344
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org