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________________ जिस मुनि का देह जल्ल और मल से लिप्त हो, जो दुस्सह रोग से ग्रस्त होने पर भी इलाज नही करवाता हो, मुख धोना आदि शरीर संस्कार से उदासीन हो और भोजन, शय्या आदि की अपेक्षा नही रखता हो तथा अपने स्वरुप के चिन्तन में ही लीन रहता है, दुर्जन और सज्जन में मध्यस्थ हो और शरीर के प्रति मोह, ममत्व भाव नही रखता हो, वही मुनि कायोत्सर्ग तप कर्ता हो सकता है। का.अ./मू./467-468 प्र.1215 कायोत्सर्ग कैसे करना चाहिए ? उ. प्रलम्बित भुज द्वन्द्व मूर्वएथ स्यातिस्य वा ।। स्थानं कायानपेक्षं यत् कायोत्सर्गः स कीर्तितः ॥ खडे होकर दो लटकती हुई भुजाएँ रखकर, 19 दोषों से रहित, दो पैरों के बीच आगे चार अंगुल जितना व पीछे चार अंगुल से कुछ कम अंतर रखकर, नाक पर दृष्टि स्थापित करके कायोत्सर्ग करना चाहिए। अनुकूलता न हो तो बैठकर शरीर की आसाक्ति से रहित होकर कायोत्सर्ग करना चाहिए। प्र.1216 कायोत्सर्ग कौनसी दिशा व किस क्षेत्र में करना चाहिए ? . उ. पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके या जिन प्रतिमा के सामने मुख करके कायोत्सर्ग करना चाहिए । कायोत्सर्ग एकान्त स्थान, अबाधित स्थान अर्थात् जहाँ पर किसी का भी गमनागमन आदि क्रिया न हो ऐसे स्थान में करना चाहिए। .. प्र.1217 आचार्य भद्रबाहुस्वामी के अनुसार कौनसा कायोत्सर्ग विशुद्ध ___ कहलाता है ? उ. तिविहाणुवसग्गाणं माणुसाण तिरियाणं । साहिए। चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 321 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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