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नमो अरिहंताणं बोलकर काउस्सग्ग पारना, काउस्सग्ग की पूर्णता नही है, उतना प्रमाण पूर्ण होने के पश्चात् अर्थात् जितने श्वासोश्वास का काउस्सग्ग है, उतने श्वासोश्वास. पूर्ण होने के पश्चात् ही 'नमो अरिहंताणं' बोलना, काउस्सग्ग की पूर्णता है। उतने समय पश्चात् यदि बिना 'नमो अरिहंताणं' बोले काउस्सग्ग पारे तो काउस्सग्ग भंग हो जाता है।। वैसे ही काउस्सग्ग पूर्ण हुए बिना 'नमो अरिहंताणं' बोलने पर भी काउस्सग्ग भंग होता है । बिल्ली, चूहा आदि बीच से निकलते हो तब आगे - पीछे खिसकने पर भी कायोत्सर्ग भंग नही होता है। राजभय, चोरभय की स्थिति में स्वयं या दूसरे को सांप आदि डसा हो, ऐसे समय
में अपूर्ण कायोत्सर्ग पारें तो भी कायोत्सर्ग भंग नही होता है । प्र.1166 ‘पणिदि छिंदण' आगार को समझाइए । .. उ. कायोत्सर्ग में आलम्बन भूत स्थापनाचार्यजी व हमारे बीच की भूमि का
कोई भी पंचेन्द्रिय जीव जैसे- चूहा, मनुष्यादि उल्लंघन (आड) करे, तब उस आड निवारण हेतु अन्यत्र जाने पर भी कायोत्सर्ग अखण्ड रहता है । अथवा पंचेन्द्रिय जीव का हमारे समक्ष होते हुए वध को देखकर
अन्यत्र जाने पर भी कायोत्सर्ग भंग नही होता है। प्र.1167 'बोहिय' आगार से क्या तात्पर्य है ? उ. जहाँ समयक्त्व को क्षति पहुंचे ऐसे स्थान को छोडकर अन्यत्र जाने पर
भी कायोत्सर्ग भंग नही होता है। प्र.1168 'खोभाइ' आगार किन परिस्थितियों में मान्य होता है ? उ. राजादि के भय, दीवार आदि के गिरने के भय में या स्वराष्ट्र के आन्तर
विग्रह या पर राष्ट्र के आक्रमण के विक्षोभ की परिस्थितियों में मान्य ..+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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