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________________ प्र.1126 'मेहाए' से क्या तात्पर्य है ? उ. मेहाए अर्थात् बुद्धि, प्रज्ञा, मेधा । जड-चेतन का भेद, हेयोपादेय के अनुरुप जीवादि तत्त्वों को जानकर मेधा से कायोत्सर्ग करना । प्र.1127 मेधावान् होना साधक के लिए क्यों आवश्यक है ? उ. मेधावान् व्यक्ति ही तत्त्वों को हेयोपादेय की दृष्टि से जानकर आत्मोन्नति (आत्मोत्थान) हेतु सम्यग् शास्त्र का चुनाव करता है । मेधावान् ही सम्यग् शास्त्र के प्रति उपादेय भाव आदर भाव रखता है । क्योंकि वह जानता है, कि सम्यक् शास्त्र ही भाव - औषध है, जो आत्म रोग मिटाने की अचूक रामबाण दवा है । शास्त्र ज्ञान से प्रबुद्ध बुद्धि ही हेय, ज्ञेय व उपादेय की दृष्टि प्रदान करती है । ? प्र. 1128 धीइए हेतु से क्या तात्पर्य है ? उ. I धीइए यानि धृत्ति, धैर्य । चित्त की स्वस्थता से अर्थात् रागादि दोष से व्याकुल न होकर मन की एकाग्रता से (समाधिपूर्वक) कायोत्सर्ग करना । प्र.1129 धृति को चिंतामणि रत्न के समान क्यों कहा गया है ? जैसे चिंतामणी रत्न इच्छित वस्तुओं को प्रदानकर बाह्य पीडा, दरिद्रता (सांसारिक दरिद्रता) को कम करती है, दूर करती है, वैसे ही धृति जिन धर्म प्रदान कर आत्मिक पीडा, व्यथा को समाप्त करती है । प्र.1130 धारणा कायोत्सर्ग से क्या तात्पर्य है ? उ. उ. ध्येय का स्मरण करते हुए / अरिहंतादि के गुणों का स्मरण करते हुए कायोत्सर्ग करना, 'धारणा' कहलाता है । प्र.1131 धारणा किससे निष्पन्न होती है ? उ. ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से धारणा निष्पन्न होती है । चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only 297 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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