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________________ प्र. 1059 हेतु किसे कहते है ? उ. प्र. 1060 कायोत्सर्ग कितने हेतु से किये जाते है ? उ. अट्ठारहवाँ हेतु द्वार उ. कार्य की उत्पति में सहायक साधन को हेतु कहते है । प्र.1061 'उत्तरीकरण' से क्या तात्पर्य है ? 280 कायोत्सर्ग निम्न बारह हेतु से चैत्यवंदनादि में किये जाते है 1. तस्स उत्तरी करणेणं (उत्तरीकरण) 2. पायच्छित करणेणं (प्रायश्चित्तकरण) 3. विसोही करणेणं (विशोधिकरण ) 4. विसल्ली करणेणं (विसल्ली करण) 5. सद्धाए (श्रद्धा) 6. मेहाए (मेधा ) 7. धीइए (धृति) 8. धारणाए (धारणा) 9. अणुप्पेहाए (अनुप्रेक्षा) 10. वेयावच्चगराणं (वैयावृत्य) 11. सम्मदिट्ठि समाहिगराणं । 'तेषामुतकरणम् - आलोचनादि, पुनः संस्करणमित्यर्थः ।' अर्थात् पुनः संस्करण । इरियावहिया से सम्बन्धित जो जीव विराधना हुई है, यद्यपि उसका मिच्छामि दुक्कडं दे दिया गया है, फिर भी कुछ पाप शेष रह गये हो, उसकी विशेष शुद्धि करने हेतु आत्मा का पुन: संस्करण- शुद्धि करना । अर्थात् ऐर्यापथिक प्रतिक्रमण से शुद्ध आत्मा में बाकी रही हुई सुक्ष्म मलीनता को भी दूर करने के लिए विशेष परिष्कार - स्वरुप कायोत्सर्ग का संकल्प उत्तरीकरण में किया जाता है। प्र. 1062 'तस्स उत्तरी' सूत्र में कायोत्सर्ग करने के हेतु कौनसे है ? उ. तस्स उत्तरी सूत्र में कायोत्सर्ग करने के चार हेतु - 1. उत्तरीकरण 2. प्रायश्चित्तकरण 3. विशोधिकरण 4. विसल्लीकरण है । Jain Education International For Personal & Private Use Only अट्ठारहवा हेतु द्वार www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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