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अष्टापदादि तीर्थों पर प्रतिष्ठित तीर्थंकर परमात्मा का ध्यान किया गया है। प्र.963 सिद्धाणं बुद्धाणं की पांचवीं गाथा 'चतारि अट्ठ दस दो य' गाथा
__ के भिन्न-भिन्न अर्थों का वर्णन कीजिए? उ. 1. पहले अथ में - अष्टापद में स्थापित दक्षिण दिशा में संभवनाथ आदि ___ चार, पश्चिम दिशा में सुपार्श्वनाथ आदि आठ, उत्तर दिशा में धर्मनाथ
आदि दस तथा पूर्व दिशा में ऋषभदेव व अजितनाथ दो ऐसे चौबीस
जिनेश्वर परमात्मा को वंदन किया गया है। 2. दूसरे अर्थ में - चार को आठ से गुणा (4 x 8) करने से बतीस
होते है तथा दस और दो को गुणा (10 x 2) करने से बीस होते है। कुल मिलाकर (32 + 20) बावन हुए । इस से नंदीश्वर द्वीप
के बावन चैत्यों को वंदन किया है । 3. तीसरे अर्थ में - चत्तारी (चत्त+अरि) अर्थात् त्याग किये है आभ्यन्तर
शत्रु राग, द्वेषादि जिन्होंने, ऐसे आठ, दस और दो कुल बीस हुए । वे महाविदेह क्षेत्र में विद्यमान सीमंधरादिक बीस जिनेश्वरो तथा सम्मेतशिखर पर सिद्ध पद को पाये हुए वर्तमान चौबीसी के (ऋषभदेव, वासुपूज्य, नेमिनाथ तथा महावीर के सिवाय) बीस तीर्थंकरों को वंदन किया है। चौथे अर्थ में - दस को आठ से गुणा करने (10 x 8) से 80 और इसे दो से गुणा करने से (10 x 8 x 2) एक सौ साठ हुए । पांच
महाविदेह क्षेत्र के उत्कृष्ठ 160 तीर्थंकरों को वंदन किया है। . 5. पांचवे अर्थ में -आठ में दस को जोडने से अठारह और इन्हें चार . से गुणा करने से 72 हुए । भरत क्षेत्र के तीन काल (भूत, वर्तमान ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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