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________________ प्र. 14 अलौकिक मंगल कितने प्रकार के होते है ? उ. उ. लोक प्रसिद्धि के अनुसार मंगल तीन प्रकार के - 1. सचित्त, 2. अचित्त और 3. मिश्र होते हैं । सचित्त मंगल - अरिहंत परमात्मा का आदि अनंत स्वरुप, सचित्त लोकोत्तर मंगल है । अचित्त मंगल - कृत्रिम व अकृत्रिम चैत्यालय । मिश्र मंगल - सचित्त और अचित्त के मिश्रण को मिश्र मंगल कहते है। जैसे - साधु, संघ सहित चैत्यालयादि । सचित्त, अचित्त व मिश्र लोकोत्तर नोकर्म तद्व्यतिरेक द्रव्य मंगल है | जीव निबद्ध तीर्थंकर प्रकृति नामकर्म, कर्म तद्व्यतिरिक नोआगम द्रव्य मंगल है | प्र. 15 कर्म तद्व्यतिरिक्त द्रव्य मंगल व नोकर्म तद्व्यतिरिक्त द्रव्य मंगल से क्या तात्पर्य है ? कर्म तद्व्यतिरिक्त मंगल तीर्थंकर नामकर्म की पुण्य प्रकृति, कर्म तद्व्यतिरिक्त द्रव्य मंगल कहलाती है, क्योंकि ये पुण्य प्रकृति लोक कल्याण रुप मांगल्य का कारण होती है I नोकर्म तद्व्यतिरिक्त द्रव्य मंगल लौकिक व लोकोत्तर मंगल (सचित्त, अचित्त व मिश्र) जो व्यवहार अपेक्षा से मंगल स्वरुप होते है, उन्हें नोकर्म तद्व्यतिरिक्त द्रव्य मंगल कहते हैं । 6 - धवला 1.1, तिलोय पण्णति गाथा 1-8 से 1-31 प्र. 16 नाम स्थापनादि की अपेक्षा से मंगल के लक्षण बताइये ? उ. नाम मंगल - वीतराग परमात्मा के अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय Jain Education International जीव द्रव्य, 'मंगलाचरण का कथन For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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