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वेयावच्चगराणं .........अन्नत्थ........ एक नवकार का कायोत्सर्ग ......... अनुशास्ति स्तुति (4) । तत्पश्चात् चैत्यवंदन मुद्रा में। 3. नमुत्थुणं - पुनः इसी क्रमानुसार काउस्सग्ग स्तुति
.......... लोगस्स .......... आदि चौथी स्तुति के पश्चात् चैत्यवंदन मुद्रा में । 4. नमुत्थुणं - ........ जावंति चेइयाइं ....... जावंत केवि साहू नमोऽर्हत
......... स्तवन० जय वीयराय के पश्चात् पुनः 5. नमुत्थुणं कहे।
'छट्ठा प्रणिपात द्वार प्र.667 प्रणिपात किसे कहते है ? उ. पांच अंगों (दोनों हाथ, दोनों घुटने व मस्तक) को भूमि से स्पर्श करते हुए
किये जाने वाला प्रणाम, पंचांग प्रणिपात कहलाता है। यह प्रणिपात 'इच्छामि
खमासमणा' सूत्र बोलते समय किया जाता है । प्र.668 परमात्मा को पंचांग प्रणिपात (नमस्कार) क्यों किया जाता है ? उ. पांच पापों(हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, व परिग्रह) से निवृत होकर पंचम
गति (मोक्ष) प्राप्ति हेतु से पंचांग प्रणिपात किया जाता है।
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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