________________
से नियत समय पर आदर पूर्वक भावोल्लास के साथ चैत्यवंदन करने से
फल की प्राप्ति होती है। अन्यथा नहीं । प्र.663 वर्तमान काल में शुद्ध विधिपूर्वक कालक्रमानुसार चैत्यवंदन करना
दुष्कर है, फिर तो करना ही नहीं चाहिए, क्योंकि अविधि से कृत
चैत्यवंदन से फल की प्राप्ति नही होती है ? उ. वर्तमान के दुःषमा काल में विधि का पालन दुर्लभ है । शुद्ध विधि का
आग्रह रखने से मार्ग का उच्छेद हो जायेगा । अतः कदाग्रह रहित अतिशय
भावों से भरकर समयानुकूल (परिस्थितिनुसार)चैत्यवंदन करना ही चाहिए। प्र.664 किस अपेक्षा से स्थापनाचार्यजी की साक्षी में कृत वंदना चैत्यवंदना
कहलाती है ? उ. स्थापना निक्षेप की अपेक्षा से । उस स्थापनाचार्यजी में अरिहंत परमात्मा की
कल्पना (स्थापना निक्षेप) करके जो की वंदना जाती है अर्थात् हृदय में जिनेश्वर परमात्मा को ही वंदन कर रहा हूँ, ऐसा भाव होने से जिनवंदना
चैत्यवंदना कहलाती है। प्र.665 नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताण........'प्रणिपात स्तव कैसे बोलना
चाहिए ? 8. 1. अस्खलित: 2.अमीलित: 3. अव्यत्यानेडित: 4. प्रतिपूर्ण 5. प्रतिपूर्ण घोष : 6.कंठोष्ठविप्रमुक्त: 7. गुरूवचनोपगतः आदि निम्न गुणों से युक्त बोलना चाहिए। 1. अस्खलितः- बिना अटके सूत्रों का स्पष्ट उच्चारण करना । 2. अमीलितः- जल्दी-जल्दी में पदों को एक साथ न बोलना अर्थात्
पदानुसार एक-एक पद को छुटा बोलना ।
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
181
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org