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4. युक्त स्वरता 5. उपयोग ।
3. उचित वृत्ति - 1. लोक प्रियता 2. अनिन्द्य क्रिया 3. संकट में धैर्य
4. यथाशक्ति दान 5 लक्ष्य का ध्यान ।
प्र. 635 बहुमान के पांचों लक्षणों को समझाइये ?
उ. 1. धर्म कथा प्रीति - चैत्यवंदनादि धर्म के श्रवण व चर्चा आदि में अत्यन्त रुचि लेता हो ।
2. धर्म निंदा अश्रवण - बहुमान भाव से युक्त व्यक्ति कभी भी धर्म की निंदा, विकथा में रुचि नही लेता है ।
3. धर्म निन्दक अनुकंपा - चैत्यवंदनादि धर्म की निन्दा करने वाले के प्रति द्वेष व तिरस्कार भाव की बजाय मन में निन्दक के प्रति खेद व दया भाव रखता हो । बेचारा कर्मवश पीडित होकर ऐसा कृत्य कर रहा है।
4. धर्म में चित्त स्थापन - चित्त ( मन ) को बार-बार चैत्यवंदन की क्रिया में लगाना ।
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5.
उच्च धर्म जिज्ञासा - चैत्यवंदन के सूत्र, अर्थ आदि को जानने की मन में तीव्र जिज्ञासा ।
प्र.636 विधि तत्परता के पांच लिंगों को समझाइये ?
उ.
1. गुरूविनय - चैत्यवंदन सूत्र जिससे सीखता है, उस गुरू के प्रति हृदय में विनय भाव होने चाहिए ।
2. उचित कालापेक्षा - चैत्यवंदन त्रिकालिक (सुबह, दोपहर व शाम) समयानुसार करता हो ।
3. उचितमुद्रा - योगमुद्रादि आसन का ध्यान रखते हुए चैत्यवंदन की
पांचवाँ चैत्यवंदना द्वार
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