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________________ व भाव दोनों से अशुद्ध होते है । 2. द्रव्य से शुद्ध पर भाव से अशुद्ध - शुद्ध दिखाई देते है, परंतु भावों से अशुद्ध होते है I 3. द्रव्य से अशुद्ध परंतु भाव से विशुद्ध - प्रत्येक बुद्ध के समान; अंतर्मुहूर्त काल तक द्रव्य लिंग को ग्रहण नही करने के कारण द्रव्य से अशुद्ध, परंतु भावना से विशुद्ध होते है । 4. द्रव्य व भाव दोनों से विशुद्ध - जिन कल्पी, वेश से शुद्ध व साधना से भी विशुद्ध । पार्श्वस्थ साधु जो वेश से प्र. 618 उपरोक्त प्रकार के कर्ता में से कौन वंदनीय है ? + उ. जिन कल्पी, जो दोनों (द्रव्य व भाव) प्रकार से शुद्ध होने कारण वंदनीय है । प्र.619 भद्रबाहु स्वामीजी के अनुसार कौनसी चैत्यवंदना शुद्ध वंदना है ? उ. भावेण वण्णारिहि चेव शुद्धेहि वंदना छेया । मोक्खफल च्चियएसा, जहोइय गुण य णियमेणं ॥ पंचाशक प्रकरण गाथा 38 श्रद्धा युक्तं भक्ति भाव से एवं स्पष्ट उच्चारण, व्यवस्थित मुद्रा आदि शुद्धि से संहित कृत वंदना, शुद्ध वंदना है । यह वंदना मोक्षफल प्रदायक है । प्र. 620 कौनसी वंदना तीथंकर परमात्मा की दृष्टि में भी शुभ है ? चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी उ. . भावेणं वण्णादिहि, तहा उ जा होइ अपरिसुद्ध त्ति । वियग रुव समा खलु, एसा वि सुहत्ति णि हिट्ठा ॥ Jain Education International पंचाशक प्रकरण गाथा 39 For Personal & Private Use Only 169 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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