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________________ चौथा अवग्रह द्वार प्र.592 अवग्रह से क्या तात्पर्य है ? उ. अवग्रह यानि अनुज्ञापित क्षेत्र । अर्थात् परमात्मा व हमारे बीच में जो अन्तर रखकर चैत्यवंदनादि किया जाता है, वह अवग्रह कहलाता है। प्र.593 अवग्रह के कितने भेद है ? उ. अवग्रह के तीन भेद है - 1. जघन्य 2. मध्यम 3. उत्कृष्ट । प्र.594 परमात्मा से जघन्य अवग्रह कितना रखना चाहिए ? उ. परमात्मा से जघन्य अवग्रह 9 हाथ का रखना चाहिए । प्र.595 मध्यम अवग्रह किसे कहते है ? उ. परमात्मा से 10 से 59 हाथ दूर रहना, मध्यम अवग्रह कहलाता है । प्र.596 उत्कृष्ट अवग्रह से क्या तात्पर्य है ? उ. परमात्मा व हमारे बीच 60 हाथ दूर का अन्तर, उत्कृष्ट अवग्रह कहलाता प्र.597 जिनमंदिर अत्यन्त छोटा होने पर हम कितना अवग्रह रखकर चैत्यवंदनादि क्रिया कर सकते है ? उ. परमात्मा से 9 हाथ से कम अवग्रह रखकर हम चैत्यवंदानादि क्रिया कर सकते है। प्र.598 अवग्रह क्यों रखा जाता है ? उ. उच्छवास- निःश्वासादि से होने वाली आशातनाओं से बचने के लिए अवग्रह रखा जाता है। प्र.599 अन्य आचार्यों के मतानुसार अवग्रह के प्रकार बताइये ? ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ 160 चौथा अवग्रह द्वार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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