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________________ सहकारी है, अत: प्रातिहार्य कहलाती है । प्र.471 रुपातीत अवस्था से क्या तात्पर्य है ? उ. रुपातीत अर्थात् परमात्मा की सिद्धावस्था अवस्था प्राप्त होती है उसे रुपातीत अवस्था कहते है । प्र. 472 परिकर के द्वारा परमात्मा की सिद्धावस्था ( रुपातीत ) का चिंतन कैसे किया जाता हैं ? परिकर में कायोत्सर्ग मुद्रा में खडी जिन प्रतिमा एवं पर्यंकासन में विराजित परमात्मा की प्रतिमा को देखकर परमात्मा की सिद्धावस्था का चिंतन किया जाता है । प्र.473 परिकर के अभाव में परमात्मा की रुपातीत अवस्था की कल्पना कैसे की जाय ? उ. उ. पद्मासन या काउस्सग्ग मुद्रा में परमात्मा को स्थिर देखकर परमात्मा की रुपातीत अवस्था की कल्पना की जाय । प्र.474 जिन प्रतिमा किन-किन मुद्रा ( संस्थान, आकृति) में मिलती ( निर्मित होती ) है ? | उ. जिन प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा और पर्यंकासन मुद्रा में निर्मित होती है प्र.475 जिन प्रतिमाएँ उपरोक्त दों मुद्राओं में ही क्यों होती है ? उ. जिनेश्वर परमात्मा इन दो मुद्राओं में ही मोक्ष गमन करते है । जिनेश्वर परमात्मा की भव समाप्ति की अंतिम वेला (सिद्ध गमन से पूर्व ) में जो संस्थान होता है, वही संस्थान आत्म प्रदेशों से घनीभूत संस्थान मोक्ष में होता है। प्र.476 वर्तमान चौबीसी के कौन से तीर्थंकर परमात्मा किस-किस संस्थान 126 अष्ट कर्मों के क्षय से जो में मोक्ष गये Jain Education International ? For Personal & Private Use Only पंचम अवस्था त्रिक www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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