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________________ प्र396 परम पावन जिन मंदिर में हिंसक प्राणी सिंह के मुंह की आकृति के होने के पीछे क्या उद्देश्य हैं ? उ. हे परमात्मा ! जिस प्रकार आपश्री ने राग-द्वेष को पांवों तले रौंदकर वीतराग अवस्था को प्राप्त किया है उसी प्रकार हे परमात्मा! मुझे भी ऐसी शक्ति प्रदान करना, जिससे मैं संसार वृद्धि के कारक राग-द्वेष को शक्तिहीन करके वीतराग अवस्था की शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त कर सकूं । प्र.397 मुख कोश कैसे बांधना चाहिए ? उ. आठ पट्टवाला मुख कोश नाक से लेकर मुंह तक बांधना चाहिए । पूजा पंचाशकनी गाथा 'पत्थेण बंधिऊण, णास अहवा जहा समाहिए' और इस गाथा की टीकानुसार नाक को बांधकर और यदि नाक बांधने से असमाधि उत्पन्न हो तो ऐसी दशा में समाधि बनाये रखने हेतु बिना नाक को बांधे आठ पड वाला मुखकोश मुख पर निष्कपट भाव से बांधना चाहिए। निष्कपट भाव अर्थात् स्वयं की आत्मा के साथ छल, कपट, धोखा किये बिना मुख कोश बांधना । प्र.398 पूजा के समय मुख कोश क्यों बांधते है ? हमारे भीतर से निकलती हुई दुर्गन्ध भरी श्वास का परमात्मा को स्पर्श न हो, इसलिए आठ पटल वाला मुख कोश बांधते है । प्र.399 आरति शब्द से क्या तात्पर्य है ? उ. आरति शब्द की व्युत्पति 'अर्ति' शब्द से हुई । त्रिषष्ठी श्लाका पुरुष चरित्र में कलिकाल सर्वज्ञानुसार अर्ति यानि 'दुःख' । दुःख व कर्मों को उतारने (क्षय करने) की प्रक्रिया आरति कहलाती है । दूसरा अर्थ है - आरात्रिक ( उपर से), आ - मर्यादा (आरंभ), रात चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only - 97 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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