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कर्मप्रकृति पंच य वण्णा सेदं पीदं हरिदरुणकिण्णवण्णमिदि ।
गंधं दुविहं लोए सुगंध-दुग्गंधमिदि जाणे ॥११॥ श्वेत-पीत-हरितारुण-कृष्णवर्णा इति पञ्च वर्णाः भवन्ति, यद्धेतुको वर्णविकारस्तद्वर्णनाम 18 वा स्वशरीराणां श्वेतादिवर्णान् यत्करोति तद्वर्णनाम । १०४.५७ लोके गन्धनाम द्विविधम्-सुगन्धनाम , दुर्गन्धनामति २ जानीहि । यदुदयात्प्रमवो गन्धस्तद्गन्धनाम । ॐवा स्व-स्वशरीराणां स्व-स्वगन्धं करोति यत्तद्गन्धनाम १११४९।५९ ॥११॥
तित्तं काय कसायं अंबिल महुरमिदि पंच रमणामं ।
मउगं ककस गुरु लघु सीदुण्हं णिद्ध रुक्खमिदि ।।१२।। यन्निमित्तो रसविकल्पस्तदसनाम 18 वा स्वशरीराणां स्वस्वरसं करोति यत्तद्र सनाम 8 तत्पञ्चविधम्-तिक्तनाम १ कटुकनाम २ कषायनाम ३ आम्लनाम ४ मधुरनाम ५ लवणो नाम रसो लौकिक: षष्टोऽस्ति, स, मधुररसभेद एवेति परमागर्म पृथक नोक्तः । लवणं विना इतररसानां स्वादुत्वाभावात् । १२१५४।६४ । यस्योदयात्स्पर्शप्रादुर्भावः [ तत्स्पर्शनाम] | वा स्वशरीराणां स्व-स्वस्पर्श करोति । तत्स्पर्शनामाष्टविकल्पम् -मृदुनाम १ कर्कशनाम२ लघुनाम ३ गुरुनाम ४ शीतनाम ५ उष्णनाम ६ स्निग्धनाम ७ रूझनाम ८ चेति स्पर्शनामाष्टविकल्पमिति पदमग्रगाथास्थम् । १३।६२१७२॥ ॥१२॥
फासं अट्ठवियप्पं चत्तारि आणुपुचि अणुकमसो ।
णिरयाणू तिरियाणू णराणु देवाणुपुब्बि त्ति ॥१३॥ पूर्वशरीराकाराविनाशो यस्योदयाद् भवति तदानुपूयं नाम । चत्वारि आनुपूर्व्याणि अनुक्रमण नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम १ तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम २ मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम ३ देव. गतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम ४ चेति । ५४।६६।७६ ॥१३॥
अब नामकर्मके शेष भेदोंका प्रतिपादन करते हैं
जिस कर्म के उदयसे शरीर में श्वेत आदि वर्ण उत्पन्न हों, उसे वर्ण नामकर्म कहते हैं। वर्णनामकर्मके पाँच भेद हैं-श्वेत, पीत, हरित, अरुण (लाल) और कृष्णवर्ण नामकर्म । जिस कर्मके उदयसे शरीर में गन्ध उत्पन्न होती है उसे गन्धनामकर्म कहते हैं । गन्ध नामकर्म लोकमें सुगन्ध और दुर्गन्ध ये दो प्रकारका जानना चाहिए ।।११।।
जिस कर्म के उदयसे शरीर में मधुर आदि रस उत्पन्न होते हैं उसे रसनामकर्म कहते हैं । रसनामकर्म पाँच प्रकारका है-तिक्त' (चरपरा ), कटु, कषाय ( कसैला), आम्ल (खट्टा ) और मधुर ( मीठा ) रसनामकर्म । जिस कर्म के उदयसे शरीर में कोमल कठोर आदि स्पर्श उत्पन्न होते हैं, उसे स्पर्श नामकर्म कहते हैं। स्पर्श नामकर्म के आठ भेद हैं-मृदु (कोमल), कर्कश (कठोर ), गुरु ( भारी), लघु (हल्का ), शीत ( ठण्डा ), उष्ण (गर्म ), स्निग्ध ( चिकना ) और रूक्ष (रूखा ) ||२|| . जिस कर्मके उदयसे विग्रहगति में पूर्व शरीरका आकार बना रहता है, उसे आनुपूर्वी नामकम कहते हैं। आनुपूर्वी नामकर्मके अनुक्रमसे ये चार भेद जानना चाहिए-नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और देवगत्यानुपूर्वी ॥३॥
6 ब प्रती चिन्हान्तर्गतमठो न विद्यते ।
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