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________________ . ४२ कर्मप्रकृति घम्मा वंसा मेघा अंजण रिट्ठा तहेव अणिवज्झा । छट्ठी मघवी पुढवी सत्तमिया माघवी णाम ॥८६॥ . धर्मा वंशा मेघा अञ्जना अरिष्टा तथैव अनियोध्या यादृच्छिकनामानः षष्ठी मघवी पृथ्वी सप्तमिका माधवी नाम, इति सप्त नारकनामानि ॥८६॥ अथ गुणस्थानके संहननं कथयति मिच्छापुव्वदुगादिसु सगचदुपणठाणगेसु णियमेण । पढमादियाइ छत्तिगि ओघादेसे विसेसदो णेया ॥८॥ मिथ्यादृष्टयादिसप्तगुणस्थानेषु षट् संहननानि भवन्ति ६ । द्वि-अपूर्वकरणादिषु चतुर्पूपशमकस्थानेषु' प्रथमत्रिकं ३ भवति । पञ्चक्षपकस्थानेषु प्रथमसंहननम् १ । इति गुणस्थानेषु सामान्य निर्देशलक्षणौधेन । विशेषतश्च [ आदेशे] ज्ञेयानि ॥८॥ वियलचउके छ8 पढमं तु असंखआउजीवेसु । चउत्थे पंचम छठे कमसो विय छत्तिगेकसंहडणी ॥८॥ द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रियासंज्ञिजीवेषु षष्टमसंप्राप्तामृपाटिकासंहननं भवति । तु पुनः प्रथमं संहननं वज्र. वृषभनाराचं नागेन्द्रपर्वतात् स्वयंप्रभद्वितीयाभिधानादर्वाक मानुषोत्तरपर्वतात्तु अर्वाक असंख्यांतजीविषु कुमोगभूमि-भोगभूमिमनुष्यतिर्यक्ष वज्रवृषभनाराचसंहननं प्रथममेव भवति । तथा [ अवसर्पिण्या: 1 कर्मभूमौ चतुर्थकाले पञ्चमकाले षटकाले च क्रमेण षट् ६ त्रीणि अन्त्यानि ३ एकं १ च सृपाटिकाषष्टं संहननानि भवन्ति ॥८॥ अब सातों नरकोंकी पृथिवियों के नाम बतलाते हैं पहली घर्मा, दूसरी वंशा, तीसरी मेधा, चौथी अंजना, पाँचवीं अरिष्टा, छट्ठी मघवी और सातवीं पृथ्वीका नाम माघवी है । ये सभी नाम अनादि-निधन एवं अनवद्य हैं ।।८।। अब गुणस्थानों में संहननोंका निरूपण करते हैं- ओघकी अपेक्षा मिथ्यात्व आदि सात गुणस्थानोंमें छहों संहननवाले जीव, अपूर्व आदि उपशम श्रेणीके चार गुणस्थानोंमें आदिके तीन संहननवाले जीव और अपूर्वकरण आदि क्षपक श्रेणीके पाँच गुणस्थानों में प्रथम संहननवाले जीव पाये जाते हैं। आदेश अर्थात् मागणास्थानोंमें विशेष रूपसे (आगमानुसार ) जानना चाहिए ॥८॥ जीवसमासोंमें संहननका निरूपण- . विकलचतुष्क अर्थात् द्वीन्द्रियसे लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक चार जातिके जीवोंमें छठा असम्प्राप्तामृपाटिकासंहनन होता है। असंख्यात वर्षकी आयुवाले भोगभूमियाँ जीवोंमें पहला वज्रऋषभनाराचसंहनन होता है। अवसर्पिणीके चौथे कालमें छहों संहननवाले, पंचमकालमें अन्तिम तीन संहननवाले और छठे कालमें अन्तिम एक सृपाटिका संहननवाले जीव होते हैं ।।८।। १. ब ओघेण । २. त णेयो। 1.ब अनियोध्या यादृच्छिकनामान आचार्याभिप्रायेण नामानः । 2. ब अपूर्वकरणानिवृत्तिकरणसूक्ष्मसाम्परायोपशान्तकषायेषु उपशमश्रेणिसम्बन्धिषु वज्रवृषभादित्रयम्। 3. अपूर्वकरणानिवृत्तिकरणसूक्ष्मसाम्परायक्षीणकषायसयोगिकेवलिपु प्रथमसंहननम् । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004239
Book TitleKarmprakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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