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________________ १६ कर्मप्रकृति भावेण ते पुणरवि अण्णे बहुपुग्गला हु लग्गंति । जह तुप्पियत्तस् य णिविडा रेणुन्न लग्गति ॥२४॥ पुनरपि तेन रागद्वेषमयेन मावेन अन्ये बहवः कर्मपुद्गलाः आत्मनः लगन्ति बन्धं प्राप्नुवन्ति । यथा घृतविलिप्तगात्रस्य निविडा रेणवो लगन्ति 1 + तथा रागद्वेषक्रोधादिपरिणाम स्निग्धावलिप्तात्मनः निवडकर्मरजसो लगन्तीत्यर्थः + ॥ २३ ॥ एकसएण बद्धं कम्मं जीवेण सत्तभेएहिं । परिणमइ आउकम्मं बधं भूयाउ [ भुत्ताउ ] सेसेणं ॥ २५ ॥ जीवेन एकसमयेन बद्धं यत्कर्म तत्कर्म आयुष्कर्म विना ज्ञानावरण-दर्शनावरण- वेदनीय- मोहनीय-नामगोत्रान्तराय सप्तभेदैः परिणमति बन्धं प्राप्नोति । च पुनः यदायुः कर्म तद् भुक्तायुःशेषेण भुक्तायुस्तृतीयभागेन - 2 त्रिभागानुक्रमेण बन्धं प्राप्नोति ॥ २५ ॥ पुनः उस राग-द्वेषमय भाव के निमित्तसे बहुतसे अन्य कर्मपुद्गल- परमाणु जीवके साथ सम्बन्धको प्राप्त होते हैं । जैसे कि घृतसे लिप्त शरीर के साथ धूलिकण अति सघनता के साथ चिपक जाते हैं ||२४|| ग्रन्थकार एक समय में बंधनेवाले कर्मोंके विभागका क्रम बतलाते हैं जीवके द्वारा एक समय में बांधा गया कर्म आयुकर्मके विना शेष सात कर्मोंके स्वरूपसे परिमित होता है । किन्तु जो आयु कर्म है, वह भुज्यमान आयुके (त्रिभागके) शेष शेष रहने पर बन्धको प्राप्त होता है ||२५|| भावार्थ-जीवके राग-द्वेषरूप भावोंका निमित्त पाकर प्रति समय जो अनन्त कर्मपरमाणु आत्मा के साथ सम्बन्धको प्राप्त होते हैं, वे प्रति समय ही आयुकर्मके विना शेष सात कर्मो के रूपसे परिणत होते रहते हैं । किन्तु आयु कर्मका बन्ध प्रति समय नहीं होता, किन्तु जो आयु कर्म भोगा जा रहा है, उसके दो भाग भोग लिये जानेपर तथा तीसरा भाग शेष रहनेपर नवीन आयुका बन्ध होगा। यदि इस प्रथम त्रिभागके शेष रहनेपर परभव-सम्बन्धी ET बन्ध किसी कारणसे नहीं हो सके, तो शेष जो आयु बची है, उसके भी दो भाग भोग लेने और एक भाग शेष रहनेपर नवीन आयुका बन्ध होगा । यही नियम आगे भी जानना चाहिए। जैसे यदि किसी जीव की आयु ८१ वर्षकी हो, तो उसके ५४ वर्ष व्यतीत होनेपर एक अन्तर्मुहूर्त्त काल तक नबीन आयुके बन्धका अवसर प्राप्त होगा। यदि किसी कारणवश उस समय आयु-बन्ध न हो, तो शेष जो २७ वर्ष बची हैं, उनमें से दो भाग बीतने और एक भागके शेष रहनेपर अर्थात् ७२ वर्षकी आयुमें आयु-बन्धका अवसर प्राप्त होगा । इसके भी खाली जानेपर ८० वर्षमें तीसरी वार नवीन आयुके बन्धका अवसर प्राप्त होगा । इसी प्रकार आगे भी जानना । इस प्रकार भुज्यमान आयुके त्रिभाग शेष रहनेपर आठ अवसर नवीन आयुबंधके प्राप्त होते हैं। यदि इन सभी विभागों में नवीन आयुका बन्ध न हो सके, तो मरणसे कुछ काल पूर्व नियमसे नवीन आयुका बन्ध हो जायेगा । यहाँ इतना विशेष ज्ञातव्य है कि किसी वनवीन आयुका बन्ध एक ही त्रिभागमें होता है, किसीके दो त्रिभागों में होता है, इस प्रकार अधिक से अधिक आठ वार तक जीव विवक्षित एक ही आयुका बन्ध कर सकता है । Jain Education International. १. भावसं० ३२७ । २. भावसं० ३२८ । 1. ब प्रतौ चिह्नान्तर्गतपाठो नास्ति । 2. व त्रिभंग्यनुक्रमेण । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004239
Book TitleKarmprakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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