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________________ प्रकृतिसमुत्कीर्तन कियत्सङ्ख्योपेतान् तत्परमाणूनाहरतीति चेत् प्राह सिद्धाणंतिमभागं अभव्वसिद्धादणंतगुणमेव । समयपबद्धं बंधदि जोगवसादो दु विसरित्थं ॥४॥ सिद्धेभ्योऽनन्तैकमागं सिद्धराश्यनन्तैकभागं अभव्यसिद्धेभ्यः अनन्तगुणं अभव्यजीवेभ्योऽनन्तगुणं कर्म-नोकर्मद्रव्यं जीवो बध्नाति । कथंकिं ) बध्नाति ? समयप्रबद्धम् । समय समय प्रबध्यते इति समयप्रबद्धस्तम् । कुतो बध्नाति ? योगवशात् , मनोवचनकाययोगवशात् । कीदृशं बध्नाति ? विसदृशमनेकरूप. मित्यर्थः । समयप्रबद्धस्य लक्षणमाह-- परमाणूहिं अणंतहिं वग्गणसण्णा हु हवदि एक्का दु । ताहिं अणंतहिं णियमा समयपबद्धो हवइ एक्को ॥ १ ॥ • वर्गः शक्तिसमूहोऽणोरणूनां वर्गणोदिता। .. वर्गणानां समूहस्तु स्पर्धकः स्पर्धकापहैः ॥ २ ॥ अथप्रतिसमयभवस्य बन्धस्य प्रमाणं कथयित्वा उदयसत्त्वप्रमाणं कथयति जीरदि समयपबद्धं पओगदो णेगसमयबद्धं वा । गुणहांणीण दिवटुं समयपबद्धं हवे सत्तं ॥४॥ अस्य जीवस्य प्रतिसमयमेकः कार्मणसमयप्रबद्धः जीर्यते हीनो भवति । पुन एतस्याऽऽत्मनः प्रतिसमयं एकः कार्मणसमयप्रबद्धः उदेति उदयं प्राप्नोति । वा अथवा सातिशयक्रियासहितस्य जीवस्य प्रयोगत: सम्यक्त्वादिप्रयोगलक्षणहेतुना एकादशनिर्जरा [ स्थान ] विवक्षया अनेकसमयप्रबद्धो जीर्यते । द्वयर्धगुणहानिमात्रसमयप्रबद्धः प्रतिसमयं सत्त्वं भवति ॥५॥ कहते हैं ये दोनों प्रकारकी पुद्गलवर्गणाएँ सारे संसारमें भरी हुई हैं, उन्हें यह जीव अपने मन-वचन-कायकी चंचलतासे प्रतिसमय ग्रहण करता रहता है। जैसे कि गर्म किया हुआ लोहेका गोला पानीमें डालनेपर सर्वाङ्गसे जलको अपने भीतर खींचता रहता है। अब ग्रन्थकार प्रतिसमय ग्रहण की जानेवाली उन वर्गणाओंका प्रमाण बतलाते हैं साधारणतः यह संसारी जीव सिद्धराशिके अनन्तवें भाग और अभव्यराशिसे अनन्तगुणित समयप्रबद्धरूप कर्म-नोकर्मवर्गणाओंको प्रतिसमय ग्रहण कर अपने साथ सम्बद्ध करता है। किन्तु योगोंकी विशेषतासे अर्थात् मन्दता या तीव्रतासे होन या अधिक परिमाणमें भी बाँधता है ॥४॥ - इस प्रकार कर्म-परमाणुओंके बन्धका प्रमाण बतलाकर अब ग्रन्थकार उनके उदय और सत्त्वका प्रमा . साधारणतः एक समयमें एक समयप्रबद्धप्रमाण कर्म-परमाणु उदयमें आकर और अपना फल देकर निर्जीण हो जाते हैं अर्थात् झड़ जाते हैं। किन्तु तपश्चरणादि विशेष प्रयोगसे अनेक समयप्रबद्ध भी निर्जीर्ण हो जाते हैं । तथापि कुछ कम डेढ़ गुणहानि आयामगुणित समयप्रबद्ध सत्त्वरूपसे अवस्थित रहते हैं ।।५।। विशेषार्थ-पूर्वोक्त दो गाथाओंमें प्रतिसमय बंधनेवाले, उदयमें आनेवाले और सत्तामें रहनेवाले कर्म-परमाणुओंका परिमाण बतलाया गया है । जिसका खुलासा इस प्रकार है १. गो० क० ४ । २. आ-समयपबद्धं । ३. गो० क. ५ । 1. इलोकोऽयं ब प्रतौ नास्ति । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004239
Book TitleKarmprakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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