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________________ प्रकृतिसमुत्कीर्त्तन १३७ अप्रत्याख्यानचतुष्क ४ प्रत्याख्यानचतुष्क ४ ये कषायद्वादशक, बहुरि एक मिध्यात्व । अबन्ध में सम्यग्मिथ्यात्व और उदय सत्ताविषे सम्यग्मिथ्यात्व सर्वघाती है। जातें दर्शनमोह के बन्धविषें मिथ्यात्व ही बंधे है, तातें उदय सत्ताविषे सर्वघाती है। इस प्रकार २१ प्रकृति सर्वघातिया कहीं । आगे छवी प्रकृति देशघातिया कहै हैं णाणावरणच उक्कं तिदंसणं सम्मगं च संजलणं । व णोकसाय विग्धं छन्नीसा देसवादीओ ॥ ११०॥ ज्ञानावरणचतुष्कं मतिश्रुतावधिमन:पर्ययज्ञानावरणानि यह ज्ञानावरणचतुष्क जानना । त्रिदर्शनं चक्षुरचक्षुरवधिदर्शनानि यह तीन प्रकार दर्शनावरण | सम्यक्त्वं च बहु सम्यक्त्वप्रकृतिमिथ्यात्व संज्वलनं संज्वलन क्रोध मान माया लोभ यह संज्वलनचतुष्क, नव नोकषाय हास्य रति अरति शोकादि ए नव नोकषाय, विन्नानि पञ्च दानान्तराय लाभान्तराय भोगान्तराय उपभोगान्तराय वीर्यान्तराय यह पाँच प्रकार अन्तरायकर्म जानना । एताः षड्विंशतिः प्रकृतयः देशघातिन्यः, ए छब्बीस प्रकृति देशघातिया जानना । भावार्थ – जो प्रकृति आत्माके सर्व गुणको घातें ते सर्वघातिया कहिए । जे प्रकृति गुण एक देशको घातें ते देशघातिया होय । आगे विशेषकरि कहै हैं—सर्व केवलज्ञानगुणके आच्छादनेंतें केवलज्ञानावरणीय सर्वघाती है। सर्व केवलदर्शन गुणके आवरण केवलदर्शनावरण अरु पंच निद्रा ए सर्वघातिया हैं। यहां जो कोई प्रश्न करे- कै पंच प्रकार निद्राकर्म तुमने सर्वघाती कहे सो इन पंच प्रकार में किन ही एक निद्राको उत्कृष्ट विपाक है कै नाहीं ? एकको जघन्य विपाक है, इनमें बहुत भेद है। ए सवै सर्वघातिया कही सुकिस कारणते ? जिनके जघन्यं विपाक हैं ते देशघातिया में कहीं होती ? ताको उत्तर - जिसकाल निद्रामै उत्कृष्ट वा जघन्य उदय है, ता काल आत्माके सर्व दर्शनको आच्छादै है । प्रचलानिद्रा सबतें जघन्य है, जब इसका भी उदय है, तब आत्माके दर्शनगुण प्रगट नाहीं पाइए है । तातें पंच हु निद्रा सर्वघातियाकर्म कही । सकलचारित्रगुणके आच्छादनतें अन• न्तानुबन्धीचतुष्क अप्रत्याख्यान चतुष्क प्रत्याख्यानचतुष्क ए बारह प्रकृति सर्वघाती है। जातें अनन्तानुबन्धीचतुष्क के उदय सकलचारित्र नाहीं है, अप्रत्याख्यानके उदय होते सकलचारित्र नाहीं । अरु प्रत्याख्यानके भी उदय होते सकलचारित्र नाहीं तातें सकलचारित्रगुणको आच्छादै सो सर्वघाती कहिए । संज्वलनचतुष्क नव नोकषाय ए चारित्र के एकदेशको आच्छादे हैं, जातें इन तेरह प्रकृति के उदय होते सकलचारित्र पाइए है, तातें ए तेरह प्रकृति देशघाती आगिली गाथा में कहिजो । इहाँ कोई प्रश्न करे कै तुम पूर्व ही यो कही है. जो सर्वगुणको आच्छावै. सो सर्वघाती है, जो गुणके एक देशको आच्छादै सो देशघाती है। इहाँ आत्माके यथाख्यातचारित्र गुण ही सर्व है, इसको संज्वलनचतुष्क अरु नव नोकषाय ए आच्छादे है, तें तेरह प्रकृति सर्वघातिया कहो, और अनन्तानुबन्धी आदि बारह प्रकृति देशघाती कहो ? ताको समाधान - कै आत्मामें चारित्रनाम गुण है, तिस चारित्रकी सर्वशक्तिको अनन्तानुबन्धी आदि बारह कषाय आच्छादै है, ताहीकी देशशक्तिको संज्वलन अरु नोकषाय अच्छा है, तातें बारह कषायके गये सकलचारित्र होय है । यथाख्यातचारित्रको यह अर्थ जानना - जैसा शुद्धात्माविषे चारित्रगुण कया है तैसा ही होना ताको नाम यथाख्यातंचारित्र कहिए । बारह प्रकृतिके गये सकलचारित्र कहिए है, यथाख्यातरूप नाहीं, जातें देशशक्ति आच्छादित है । जब तेरह वे भी जाय हैं तब वही सकलचारित्र यथाख्यातरूप होय. है । 0 / Jain Education International. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004239
Book TitleKarmprakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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