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________________ प्रकृतिसमुत्कीर्तन १२३ प्रकार है एई कषाय जातें किस ही जीवके परिणाम किस ही जीवको सर्वथा प्रकार नहीं मिले हैं, तातें परिणाम भेदतें कषाय-भेद अनन्तानन्त भए। अथ नव नोकषाय कहे हैं हस्स रदि अरदि सोयं भयं जुगुंन्छा य इत्थि पुंवेयं । संढं वेयं च तहा णव एदे णोकसाया य ॥६२॥ हास्यं रतिः अरतिः शोकं भयं जुगुप्सा स्त्रीवेदं पुंवेदं नपुंसकवेदं च तथा नव एते नोकषाया ज्ञेयाः। . भावार्थ -जिसके उदय हास्य प्रगटे सो हास्य कहिए । जाके उदय इष्टविर्षे प्रीति सो रति । जो इष्टविष अप्रीति सो अरति । जिसके उदय उदासीनता सो सोक । 'अरु जाके उदय अपने दोष आच्छादे पर-दोष प्रगट करे सो जगप्सा। जाके उदय स्त्रीके भाव परिणमै सो स्त्रीवेद । जाके उदय पुरुषभाव परिणमै सो पुरुषवेद । जाके उदय नपुंसक भाव परिणमै सो नपुंसकवेद । आगे तीन वेदके लक्षण कहे हैं छादयदि सयं दोसे णियदो छाददि परं पि दोसेण । छादणसीला जम्हा तम्हा सा वण्णिदा इत्थी ॥६३॥ यस्मात् या स्वयं दोषैः आच्छादयति जिस कारणतें जो जीव आपको मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, असंयम, क्रोध मान माया लोभ इत्यादि सूक्ष्म स्थूल परिणामहु करि आच्छादे स्वयं, बहुरि नियतः परं अपि दोषैः छादयति निश्चयकरि और जीवको भी कोमल स्नेह दृष्टि इत्यादि कुटिल अवस्थाकरि वशि करिके हिंसा असत्य स्तेय कुशील परिग्रहादिक पापहुविषै लगायकरि दोषहु करि आवरे, तस्मात् सा छादनशीला खो वर्णिता। तातें सो आच्छादन स्वभाव धारे सो स्त्रीवेद है। भावार्थ-जो आपको दोषनिकरि आच्छादे, अरु और को भी; सो द्रव्यपुरुष वा द्रव्यनपुंसक वा द्रव्यस्त्री होय । लिंग दोय प्रकार है-एक द्रव्यलिंग, एक भावलिंग। द्रव्यलिंग सो कहावे जिस बाह्य लक्षणकरि पुरुषलिंग-संस्कार नपुंसक मिश्रत्व संस्कार इति द्रव्यलिंग। भावलिंग जु है परिणामहुकरि जिसके जैसे परिणाम होय, तिसको तैसे वेद कहिए। तिसतें जाको आच्छादन स्वभाव होय सो भाव स्त्रीवेद कहिए । आगे भावपुरुष कहिए है पुरुगुणभोगे सेदे करेदि लोयम्हि पुरुगुणं कम्मं । पुरु उत्तमो य जम्हा तम्हा सो वण्णिदो पुरिसो ॥६४॥ यस्मात् पुरुगुणभोगान् शेते जिसने पुरुगुण जु हैं बड़े-बड़े गुण ज्ञान दर्शन चारित्रादि, अरु बड़े ही भोग जिन विषे प्रवर्ते हैं, लोके पुरुगुणं कर्म करोति अरु जिसने लोकविर्षे बड़े गुण-संयुक्त क्रियाको करे है, पुरु उत्तमः, औरनिते बड़ा है उत्तम है, तस्मात् स पुरुषः वर्णितः, तिसते सो पुरुष कहिए है। - भावार्थ--जो बड़े गुण बड़े भोग-प्रधान क्रियाविषे प्रवर्ते सो द्रव्यलिंग होय, वा स्त्री वा पुमान वा नपुंसक होय सो भावपुरुषवेद कहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004239
Book TitleKarmprakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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