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________________ कर्मप्रकृति व प्रति प्रशस्तिः स्वस्ति श्री संवत् १६२७ वर्षे कात्तिकमासे कृष्णपक्षे पञ्चम्यां तिथौ अयेह श्रीमधूकपुरे श्रीचन्द्रनाथचैत्यालये श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्रीकुन्दकुन्दान्वये भ. श्रीपद्मनन्दिदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीदेवेन्द्रकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ. श्रीविद्यानन्दिदेवास्तत्पट्टे भ. श्री[म-ल्लिभूषणास्तपट्टे भ. श्रीलक्ष्मीचन्द्रास्तत्पट्टे म० श्रीवीरचन्द्रस्तित्पट्टे भ० श्रीज्ञानभूषणास्तपट्टे म० श्रीप्रभाचन्द्रोपदेशात् वलसाढनगरवास्तव्यः सिंहापराज्ञातीयः धर्मकार्यतत्परः श्रे० हांसा मार्या मटकू तयों पुत्री यतिजनमक्का अनेक व्रतकरणतत्परा जिनालयार्थ दत्तनिजगृहा बाई पूतली तयेमां श्रीकर्मकाण्डटीको लिखाप्य भ. श्रीप्रभाचन्द्रेभ्यो दत्ता। चिरं नन्दतु । व्यावर प्रतिकी लेखक-प्रशस्ति स्वस्ति श्री सं० १६२७ वर्षके कार्तिक मासके कृष्णपक्ष की पंचमी तिथिमें आज इस श्रीमधूकपुरमें स्थित श्रीचन्द्रनाथ चैत्यालयमें मूलसंघ, सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगण वाले श्रीकुन्दकुन्दाचार्यकी परम्परामें भट्टारक श्रीपद्मनन्दिदेव हुए। उनके पट्टपर भ० श्रीदेवेन्द्रकीर्तिदेव हुए । उनके पट्टपर भ० श्री विद्यानन्दि देव हुए। उनके पट्टपर भ० श्रीमल्लिभूषण हुए । उनके पट्टपर भ० श्री लक्ष्मीचन्द्र हुए। उनके पट्टपर भ० श्रीवीरचन्द्र हुए। उनके पट्टपर भ० श्रीज्ञानभूषण बुए । उनके पट्टपर आसीन भट्टारक श्री प्रभाचन्द्रके उपदेशसे बलसाढ नगरके रहनेवाले सिंहपुराजातिके और धर्मकार्यमें तत्पर ऐसे श्रेष्ठी हाँसा हुए। उनकी स्त्रीका नाम मटकू था । उन दोनोंके पूतलीबाई नामकी पुत्री हुई, जो यतिजनोंकी परम भक्त और व्रत करनेमें तत्पर थी तथा जिनालयके लिए जिसने अपना घर भी प्रदान कर दिया था, उसने श्रीकर्मकाण्डकी यह टीका लिखाकर भ० श्रीप्रभाचन्द्रको भेंट की। पढ़नेवाले सर्व जन आनन्दको प्राप्त हों। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004239
Book TitleKarmprakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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