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________________ गया है । वृत्ति में किस प्रकार एक-एक विषय और शब्द को विस्तार से समझाया गया है शोधकर्त्ता ने इसका स्पष्टीकरण किया है 1 भगवान् महावीर के समकालीन दार्शनिक परिवेश का परिचय देते हुए जैन दर्शन के आधारभूत तात्वों के परिप्रेक्ष्य में आचाराङ्ग वृत्ति का दार्शनिक दृष्टिकोण से अध्ययन दो अध्यायों में प्रस्तुत किया गया है। इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि शीलांकाचार्य द्वारा किया गया आचाराङ्ग का दार्शनिक विवेचन दर्शनशास्त्र के सभी पक्षों को समेटे है। इसमें रहा सैद्धान्तिक विवेचन धर्म और दर्शन के साक्ष्यों को स्पष्ट करता है । सांस्कृतिक दृष्टिकोणों से अध्ययन में वृत्तिकार द्वारा उस काल की संस्कृति के विभिन्न पहलुओं की चर्चा को सम्मिलित किया गया है । वृत्ति में चर्चित ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक आदि विषयों का पृथक् अध्ययन रोचक सूचना सामग्री लिए है । यह समस्त विवेचन सामाजिक परिस्थितियों एवं व्यवस्थाओं का विस्तृत लेखा-जोखा उपलब्ध कराता है । भाषात्मक अध्ययन में सम्पूर्ण विषय को नहीं समेटा गया है। इसमें गद्य-पद्य शैली तथा व्याकरण पर आधारित सूचनाएं संक्षेप में दी गई हैं । इतने भर से यह तो स्पष्ट हो ही जाता है । कि अर्थ विस्तार के साथ ही भाषात्मक प्रवाह तथा सहज ग्राह्यता इस वृत्ति की विशेषता है । इस प्रकार पृथक्-पृथक् अध्यायों में इस विस्तृत ग्रन्थ की विभिन्न दृष्टिकोणों से चर्चा प्रस्तुत की गई है । ये दृष्टिकोण हैं— दार्शनिक, सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक । अन्त में उपसंहार के रूप में वृत्तिकार की आचार संबंधी विवेचना प्रस्तुत की है जो इस वृत्ति का मुख्य प्रतिपाद्य विषय है । जैन श्रमणों में स्वाध्याय व तपश्चर्या की परम्परा तो अतिप्राचीन है और उनकी चर्या में रची बसी है। किन्तु आधुनिक शिक्षाप्रणाली पर आधारित अध्ययन का उसमें समन्वय पिछले कुछ वर्षो से ही आरंभ हुआ है । यह हर्षका विषय है कि कुछ वरिष्ठ श्रमण- श्रमणियों ने इस ओर विशेष रुचि दिखाना आरंभ किया है और अपने शिष्य - शिष्याओं को वर्तमान प्रणाली में उच्चतम स्तर की शिक्षा ग्रहण करने को प्रोत्साहित किया है । श्रमण संघ की लोकप्रिय विदुषि साध्वी श्री चारित्रप्रभाश्रीजी म० भी उन्हीं में से एक है। प्रसिद्धवक्ता होने के साथ ही आपकी लोकप्रियता के पीछे स्पष्ट और तर्कसंगत चिन्तन तथा समन्वय की निष्पक्ष उदारता का भी योगदान रहा है । आपने इस ग्रन्थ का विस्तृत प्राक्कथन लिखकर ग्रन्थ (६) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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