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वृत्तियाँ लिखी हैं। आप आगमवेत्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं। आपने ५०००० ग्रन्थ पढ़े थे। उनकी वृत्तियाँ निम्न हैं। कोष्ठक में श्लोक प्रमाण दिये हैं१. आवश्यक टिप्पणी
(५०००) २. शतक विवरण
(४०००) ३. अनुयोगद्वार वृत्ति
(८०००) ४. पुष्पमाला मूल
X ५. पुष्पमाला वृत्ति
(१४०००) ६. जीव समास विवरण
(७०००) ७. भवभावना सूत्र ८. भवभावना विवरण
(१३०००) ९. नन्दि टिप्पणक १०. विशेषावश्यक भाष्य बृहद् वृत्ति
(२८०००) नेमिचन्द्र की वृत्ति
सुबोधक सुख-बोधा वृत्ति के नाम से प्रसिद्ध यह विवेचन जन-जन की श्रुति का केन्द्रबिन्दु बना हुआ है। विक्रम सं. ११२९ में उत्तराध्ययन पर सरल से सरल एवं सुबोध शैली में सुख का बोध कराने वाली वृत्ति लिखी गई।
नेमिचन्द्र सूरि का दूसरा नाम देवेन्द्र गणि भी प्राप्त होता है। ये बृहद् गच्छीय उपाध्याय आम्रदेव के शिष्य थे। उनके गुरु भ्राता मुनिचन्द्रसूरि की प्रेरणा से सामान्यजनों के हित के लिए यह वृत्ति लिखी। जिसकी पूर्णाहुति अणहिलपुरपाटण नगर में हुई थी। उत्तराध्ययन की इस वृत्ति में १२००० श्लोक प्रमाण वृत्ति का विवेचन है । नेमिचन्द्र सूरि की अन्य रचनाएँ अब तक प्रकाश में नहीं आईं। यह सूचना भी शीलाङ्काचार्य हरिभद्र और शान्तिसूरि की वृत्तियों से प्रभावित होकर लिखी गई थी।
उत्तराध्ययन वृत्ति में वृत्तिकार ने ग्रन्थ के आरम्भ में तीर्थंकरों, सिद्धों, साधुओं एवं श्रुत आराधक देवों की वन्दना की है। उत्तराध्ययन के ३६ अध्ययन के मूलभूत विषय को ध्यान में रख कर प्रत्येक विवेचन में सैद्धान्तिक निपुणता का परिचय दिया है। सम्पूर्ण प्रसूति दृष्टान्तों से परिपूर्ण है। श्रीचन्द्रसूरि की वृत्तियाँ-.
__ श्रीचन्द्रसूरि ने—१. न्याय प्रवेश-पञ्जिका, २. जयदेवछन्द : शास्त्र टिप्पणक, ३. निशीथ-चूर्णि टिप्पणक, ४. नन्दि-सूत्र हारिभद्री टिप्पणक, ५. जीतकल्प चूर्णि टिप्पणक, ६. पञ्चोपांग सूत्रवृत्ति, ७. श्राद्ध-सूत्र, ८. प्रतिक्रमण सूत्र वृत्ति, ९. पिण्ड-विशुद्धिवृत्ति इत्यादि वृत्तियाँ न्याय एवं सिद्धान्त के विषय को प्रतिपादित करने वाली लिखी हैं। आगमों पर श्रीचन्द्रसूरि की कम वृत्तियाँ हैं, अन्य ग्रन्थों पर अधिक हैं।
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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